मैं दुखी हूं. काफी धक्का लगा है मुझे, मगर मैं क्या कर सकता हूं? हम गरीब लोग हैं.
फैयाज़ की कही लाइन है ये. नाम से शायद न पहचानते हों आप, इसीलिए रेफरेंस बताते हैं. फैयाज़ जोमैटो के वही डिलिवरी बॉय हैं, जिनका लाया खाना खाने से इनकार कर दिया था अमित शुक्ला ने. ये कहकर कि सावन में वो किसी मुसलमान के हाथ लाया खाना नहीं खाएंगे. अगर आप एक सेहमतमंद दिमाग के इंसान हैं, तो फैयाज़ का कहा जानकर रुआंसे हो जाएंगे.
ये घटना 31 जुलाई को सुर्खियों में रही. अब भी इसे लेकर सोशल मीडिया पर तलवारें निकली हुई हैं. हिंदू बनाम मुस्लिम के इस कीचड़ प्रकरण में सबसे पीड़ित किरदार फैयाज़ का ही है. वो इसलिए कि आप सोचिए. अगर कोई आपके हाथ से छुआ खाना खाने से इनकार कर दे. बस ये कहकर कि आप किसी और धर्म के हैं. कितना अपमानित महसूस होगा हमें! कितनी पीड़ा होगी! फैयाज़ भी इसी बात की तकलीफ़ में हैं. न्यूज़ एजेंसी PTI के मुताबिक, फैयाज़ ने बताया-
हां, तकलीफ़ तो हुई है. अब क्या बोलेंगे सर, अब लोग जैसा बोलेंगे… सही है इस पर क्या कर सकते हैं. गरीब लोग हैं. सहना पड़ेगा सर.
ये पूरा प्रकरण यूं शुरू हुआ कि जबलपुर में रहने वाले अमित शुक्ला ने 30 जुलाई की रात एक ट्वीट किया. इसमें लिखा था-
अभी-अभी जोमैटो पर किया एक ऑर्डर कैंसल किया मैंने. उन्होंने एक गैर-हिंदू डिलिवरी बॉय को मेरा खाना पहुंचाने की जिम्मेदारी दी. उन्होंने कहा कि वो डिलिवरी बॉय नहीं बदल सकते. न ही वो ऑर्डर को कैंसल किए जाने पर पैसा वापस लौटाने को राज़ी थे. मैंने उनसे कहा कि जो डिलिवरी मैं लेने को तैयार नहीं, उसे लेने के तुम मुझे मजबूर नहीं कर सकते. रिफंड मत दो, बस कैंसल कर दो.
फिर जोमैटो के फाउंडर दीपेंदर गोयल का ट्वीट आया. इसमें जो लिखा था, उसने लोगों का (आई मीन सेहतमंद लोगों का) दिल जीत लिया. ट्वीट यूं था-
हम भारत की मूल भावना पर गर्व करते हैं. अपने ग्राहकों और पार्टनर्स की विविधता पर गर्व है हमें. हमारे आदर्शों के आड़े आने वाले किसी बिज़नस के हाथ से चले जाने पर हमें कोई तकलीफ़ नहीं.
जोमैटो और दीपेंदर के इस जवाब पर कइयों ने दिल लुटाया. मगर अमित शुक्ला अपनी बात पर अड़े हैं. उन्हें अब भी यकीन है कि खाना पहुंचाने वाले का धर्म देखना बिल्कुल सही है. किसी न्यूज़ चैनल के किए सवाल का जवाब देते हुए जनाब ने अपने किए को अभिव्यक्ति की आज़ादी से जोड़ दिया. कहा, सावन का पवित्र महीना चल रहा है. और वो किसी गैर-हिंदू के हाथ से पहुंचाया गया खाना लेने से इनकार करते हैं, तो ये उनका हक़ है. उनकी निजी पसंद-नापसंद का सवाल है. कई लोग उनकी बात का समर्थन भी कर रहे हैं. वो जोमैटो और उसके लिए इस स्टैंड की वाहवाही करने वालों को कोस रहे हैं.
छुआछूत असंवैधानिक है. किसी के धर्म या जाति के आधार पर उसके साथ भेदभाव करना गै़रकानूनी है. वैसे तो ऐसी बातों के लिए संविधान और कानून के पन्ने खोले ही नहीं जाने चाहिए. क्योंकि ये बातें मनुष्यता से जुड़ी हैं. आप इंसान होकर किसी और इंसान को खुद से कमतर, कम पवित्र, कम शुद्ध कैसे समझ सकते हैं? अमित शुक्ला जैसे लोग बस किसी फैयाज़ को तकलीफ़ नहीं देते. ऐसे लोग हर दिमागी तौर पर स्वस्थ इंसान को निराश करते हैं. उम्मीद है कि अमित शुक्ला जिस ईश्वर के नाम पर इतनी असंवेदनशीलता दिखा गए, वही ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे.
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