“370 की समाप्ति, शांति की गारंटी नहीं है”

क्या कहते हैं कश्मीर से धारा 370 के खात्मे और राज्य के बंटवारे पर विशेषज्ञ और पत्रकार.




कश्मीर में पिछले कुछ दिनों से गतिविधियां बढ़ी हुई थी. सुरक्षा बलों की अतिरिक्त कंपनियां घाटी में भेजी गई. एडवाइज़री जारी कर पर्यटकों को कश्मीर से बाहर निकलने को कहा गया, अमरनाथ यात्रा बीच में रोक दी गई, स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए, नेताओं को नज़रबंद कर दिया गया, इंटरनेट, मोबाइल सेवाएं बंद कर दी गई. इसके बाद से ही कश्मीर में किसी बड़े नीतिगत बदलाव की संभावना जताई जा रही थी.
सोमवार की सुबह राष्‍ट्रपति ने आदेश जारी कर जम्‍मू-कश्‍मीर से राज्‍य को विशेष दर्जा देने वाली संविधान की अनुच्छेद 370 को हटा दिया है. इसके अलावा राज्य का पुनर्गठन करते हुए इसे दो हिस्सों में विभाजित करने का बिल भी लाया गया है. गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में बेहद हो-हल्ले के बीच बिल पेश करते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 का सिर्फ एक खंड बचा रहेगा, बाकी सारे प्रावधान खत्म हो जाएंगे.
मोदी सरकार के इस फैसले का बसपा, बीजेडी और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने अपना समर्थन दिया है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने ट्वीट के जरिए कहा कि ''जम्मू-कश्मीर पर हम सरकार के फ़ैसले का समर्थन करते हैं. हमें उम्मीद है कि इससे राज्य में शांति और प्रगति की शुरुआत होगी.

We support the govt on its decisions on J & K. We hope this will bring peace and development in the state.

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बीबीसी हिंदी के अनुसार केंद्र सरकार के इस फैसले पर कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि ''भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को ख़त्म जम्मू-कश्मीर की जनता के साथ विश्वासघात किया है जबकि स्वायत्तता के आधार पर ही जम्मू-कश्मीर भारत के साथ आया था. इस फ़ैसले के बहुत ख़तरनाक नतीजे होंगे.''
लोकतंत्र को बर्बाद करने की कोशिश
राज्यसभा में कांग्रेस ने इस बदलाव का विरोध किया है. कश्मीर समस्या के समाधान के लिए बनी तीन सदस्यों वाली इंटरलॉक्युटर समिति की सदस्य रही प्रो. राधा कुमार ने मोदी सरकार के इस महत्वपूर्ण फैसले पर विस्तार से बात की. प्रो. कुमार कहती हैं, “सरकार ने अनुच्छेद 370 को जिस तरह से बदला है उस पर कई सवाल खड़ा होता है. यह संदेह पैदा करता है कि देश में लोकतंत्र है भी या नहीं. सरकार बंदूक के दम पर बदलाव कर रही है. एख पूरे राज्य का स्वरूप बदला जा रहा है. सरकार बंदूक के दम पर कश्मीरियों का विरोध कैसे रोक पाएगी? कश्मीर का एक पक्ष पाकिस्तान है जो वहां हथियारों की सप्लाई कर हालात को और बिगाड़ने का काम करेगा. कश्मीर एक बार फिर से 1990 के दौर में चला जाएगा.’’
राधा कुमार राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए ऑर्डर पर चिंता जताते हुए कहती हैं, “मैं समझ नहीं पा रही हूं की राष्ट्रपति ने इस ऑर्डर पर हस्ताक्षर कैसे कर दिया.  अनुच्छेद 370 को खत्म करने का फैसला था, कोई मजाक का विषय नहीं. किसी से सलाह नहीं ली गई. किसी को भनक तक नहीं लगी. जिनके लिए फैसला लिया जा रहा है उनको बंदूक के साए में रखा जा रहा है. मुझे लगता है की राष्ट्रपति को इस फैसले पर मुहर लगाने से इनकार कर देना चाहिए था. राष्ट्रपति को जल्द से जल्द इस्तीफा देना चाहिए. कैसे उन्होंने हस्ताक्षर कर दिया. संविधान को राष्ट्रपति के आर्डर के द्वारा बदला जा रहा है. संवैधानिक नियम को ताक पर रखकर ये फैसला लिया गया है.’’
केंद्र सरकार ने कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद को खत्म करने के साथ ही जम्मू कश्मीर को दो हिस्सों में बांटने का बिल भी पेश किया है. इसके तहत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अब दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश होंगे. लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी, जबकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी, दिल्ली की तर्ज पर.
राधा कुमार कहती हैं, “सरकार ने इतना बड़ा फैसला ले लिया बिना किसी से सलाह-मशविरा किए. जब हमारा संविधान लागू हुआ था, उससे पहले संविधान की ड्राफ्ट कॉपी तैयार की गई. उसे जनता के बीच सलाह और सुझाव के लिए रखा गया. तब अम्बेडकर ने कहा कि हम हर आर्टिकल पर जनता से सलाह चाहते है. तब शायद दस हज़ार से पन्द्रह हज़ार तक लिखित सुझाव आए थे. उस पर संविधान सभा ने एक बार फिर से बहस की. तब जाकर संविधान लागू हुआ. इस तरह से चलता है लोकतंत्र. ये लोग तो लोकतंत्र को ताक पर रख चुके हैं. आज ये कश्मीर में हो रहा है कल देश के किसी भी हिस्से में सेना के दम पर लोगों का दमन किया जा सकता है.’’
अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में जा सकता है कश्मीर मामला
कश्मीर विवाद पर कश्मीरनामा नाम से किताब लिखने वाले अशोक पाण्डेय मोदी सरकार के इस फैसले के ऐतिहासिक संदर्भ को सामने रखते हैं. वो बताते हैं, “कश्मीर के तत्कालीन राजा हरी सिंह से जो विलय संधि हुई थी. उसकी शर्तों के तहत 1949 में धारा 370 को संविधान में शामिल कर कश्मीर को अलग से स्वायत्तता दी गई. अनुच्छेद 370 दो आज़ाद देशों के मिलने का आधार था. सरकार ने वो आधार ही खत्म कर दिया. इससे पहले दो दफा सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि अनुच्छेद 370 स्थायी है, उसे हटाया नहीं जा सकता. 370 में ये प्रावधान था कि राष्ट्रपति हटा सकते हैं, लेकिन कश्मीर की संविधान सभा से सलाह के बाद. इन्होंने संविधान सभा को मान लिया कश्मीर की विधानसभा और कश्मीर की विधानसभा का प्रतिनधि मान लिया गया वहां के गवर्नर को. अब इसको सुप्रीम कोर्ट कितना मानेगा और अगर यह अंतराष्ट्रीय कोर्ट में जाएगा तो देखना होगा की क्या होगा. सरकार ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में जाने लायक बना दिया है.’’
अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद कश्मीर में क्या हो सकता है. इस सवाल के जवाब में अशोक पाण्डेय बताते हैं, ‘’कश्मीर में लोग इससे स्वाभाविक रूप से नाराज़ होंगे. इस पर प्रतिक्रिया करेंगे. अभी वहां सेना काफी संख्या में है. तो हो सकता है कि बहुत प्रतिक्रिया न हो लेकिन इतनी बड़ी सेना को कब तक बनाये रखा जा सकता है. इसके साथ ही 35ए भी समाप्त हो जाएगा, कहा जा रहा है कि लोग वहां जमीन भी खरीद सकते हैं. कंपनी लगाई जा सकती है, लेकिन कंपनी वालों की सुरक्षा का क्या होगा. आप कश्मीर समस्या को हल करने की बात कर रहे हैं लेकिन इससे आतंकवाद का हल तो हुआ नहीं. इसमें आपने अपने तरीके से कश्मीर को तथाकथित मुख्य धारा से जोड़ दिया. इस पूरे फैसले में एक भी कश्मीरी नहीं है. ना सरकार में कोई कश्मीरी है और ना राज्यपाल कश्मीरी हैं और ना ही राष्ट्रपति कश्मीरी है. ये कर तो दिया गया लेकिन इसे कश्मीरी मानेंगे या नहीं ये देखना पड़ेगा. अगर नहीं मानेंगे तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी वो समझा जा सकता है. आतंकवाद पर इस फैसले से कोई लगाम लगेगी मुझे समझ में नहीं आ रहा है.”
राज्यसभा में राष्ट्रीय जनता दल के नेता मनोज झा ने कहा कि कश्मीर में जो फैसला आया है इसके बाद कश्मीर फिलिस्तीन बनने की राह पर चला जायेगा.
दुस्साहसिक भी साबित हो सकता है केंद्र सरकार का फैसला
कश्मीर से रिपोर्टिंग कर चुके पत्रकार राहुल कोटियाल लिखते हैं, ‘‘ये क़दम निश्चित ही ऐतिहासिक और अभूतपूर्व तो है. इससे पहले किसी भी सरकार ने अनुछेद 370 को इस क़दर छेड़ने का साहस या दुस्साहस कभी नहीं किया था. एक वजह यह भी थी कि बाक़ी सरकारें संवैधानिक तरीक़े से इससे पार पाना चाहती थी, या पार पाने का दिखावा करती थी जबकि इस सरकार ने संविधान के अंदर मौजूद खामियों का फ़ायदा उठाकर ऐसा कर दिया. ठीक वैसे ही जैसे आर्टिकल 35ए लाया गया था. साल 1954 में नेहरु मंत्रिमंडल ने राष्ट्रपति आदेश के ज़रिए इस आर्टिकल को लागू किया था, अब मोदी मंत्रिमंडल ने भी राष्ट्रपति आदेश के ज़रिए ही इसे हटा दिया है.
इस आदेश के बाद राज्य के पुनर्गठन की राह भी खोल दी है. यह भाजपा के मातृ संगठन संघ की पुरानी चाहत रही है. लेकिन मूल सवाल वहीं खड़ा है. कश्मीर का जो विलय कुछ तकनीकी ख़ामियों के चलते 'विशेष' माना जाता है, क्या वह सारी कमियां सिर्फ़ एक राष्ट्रपति आदेश से दूर हो जाएंगी? इस आदेश से आर्टिकल 35ए तो समाप्त हो जाएगा, लेकिन कश्मीर को मिले कई अन्य विशेषाधिकार बरक़रार रहेंगे. पुनर्गठन का मुद्दा भी न्यायिक और संवैधानिक समीक्षा से गुज़रे बिना एक ऐसा तानाशाही फ़ैसला बन पड़ेगा जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का पक्ष कमज़ोर ही करेगा. कश्मीर समस्या भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय समस्या है, यह भारत का आधिकारिक स्टैंड रहा है.
इन तकनीकी पहलुओं के अलवा सबसे अहम बात है घाटी का माहौल. ये किसी से छिपा नहीं है कि घाटी में अलगाववाद की आग आज अपने चरम पर है. कश्मीर का आम युवा ख़ुद को भारत से उस तरह जुड़ा हुआ नहीं मानता जैसे अन्य भारतीय मानते हैं, उसके मन में अलगाव की भावना है और वो ख़ुद को एक भारतीय नहीं बल्कि सिर्फ़ एक कश्मीरी के तौर पर देखता है. उसके मन में भारत के प्रति कई सवाल हैं, वो ख़ुद को भारत के कब्जे में मानता है. ऐसी मनोदशा वाले युवाओं के बीच इस फ़ैसले के क्या परिणाम होंगे, यह भी आने वाले समय में देखना होगा.
अलगाववादियों को इस फ़ैसले और ख़ास तौर से इस फ़ैसले को लागू करने के तरीक़ों से पर्याप्त सामग्री मिल जाएगी कि वो कश्मीर में एक और पीढ़ी को हिंसक जंग में झोंकने के लिए प्रेरित करें. अलगाव की जो भावना वहां मौजूद है उसे हवा देने में अलगाववादी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.
अभी कश्मीर में इंटरनेट और फोन सेवाएं बाधित है जिस वजह से ये सूचना नहीं मिल पा रही की वहां के लोगों में इसको लेकर क्या प्रतिक्रिया है.

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