भारतीय खेल इतिहास के वो 7 खिलाड़ी, जिन्होंने ग़रीबी की जंज़ीरों को तोड़कर सफ़लता के झंडे गाड़े

भारतीय खेल इतिहास में कई ऐसे महान खिलाड़ी हुए हैं जिन्होंने दुनियाभर में देश का नाम रौशन किया है. अपने शानदार खेल की बदौलत इन खिलाड़ियों ने कई युवाओं को प्रेरित करने का काम किया. लेकिन उनकी इस सफ़लता के पीछे न सिर्फ़ कठिन परिश्रम बल्कि ग़रीबी भी एक मुख़्य वजह रही. विपरीत परिस्तिथियों से लड़कर इन खिलाड़ियों ने दुनियाभर में सफ़लता के झंडे गाड़े. 
आज हम आपको 7 ऐसे ही खिलाड़ियों के संघर्ष की प्रेरणादायक कहानी बताने जा रहे हैं जिसे हर किसी को जानना बेहद ज़रूरी है
1- रोहित शर्मा (क्रिकेट) 


टीम इंडिया के 'हिटमैन' रोहित शर्मा मूल रूप से नागपुर से हैं. रोहित आज भले ही करोड़ों के मालिक हों, लेकिन वो बेहद ग़रीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं. रोहित के पिता मुंबई के डोम्बिवली में एक कंपनी में केयरटेकर का काम करते थे, कमाई इतनी नहीं थी कि बेटे को अच्छी शिक्षा दे सकें. इसलिए उन्होंने रोहित को उनके चाचा के पास बोरीवली भेज दिया. रोहित के माता-पिता डोम्बिवली में एक कमरे के मकान में रहा करते थे.
2- हिमा दास (एथलीट) 
19 साल की एथलीट हिमा दास इन दिनों दुनिया भर में भारत का नाम रौशन कर रही हैं. हाल ही में हिमा ने दुनियाभर के कई बड़े मंचों पर 20 दिनों के भीतर 5 गोल्ड मेडल जीतकर हम भारतीयों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था. हिमा भी बेहद ग़रीब परिवार से आती हैं उनका परिवार अब भी झोपड़ी में रहता है. एक वक़्त तो ऐसा भी था जब हिमा के पास दौड़ने के लिए जूते भी नहीं हुआ करते थे, लेकिन आज दुनिया के बड़े से बड़े ब्रैंड उन्हें अपने साथ जोड़ना चाहते हैं.
3- मैरी कॉम (बॉक्सिंग) 


ओलंपिक पदक विजेता मैरी कॉम आज देश की महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं. मैरी कॉम दुनिया की एकमात्र बॉक्सर हैं जो 6 बार की वर्ल्ड चैम्पियन बनी. मैरी के संघर्ष की कहानी भी बेहद प्रेरणादायक है. वो बेहद ग़रीब परिवार से आती हैं. माता-पिता दूसरों के खेतों में काम करके परिवार का पेट पालते थे. मैरी मणिपुर के जिस ज़िले से आती हैं वो बेहद संवेदनशील जगह मानी जाती हैं जहां बॉक्सिंग जैसे खेल के सपने देखना दूर की बात थी. लेकिन हालातों से लड़कर वो वर्ल्ड लेवल तक पहुंची. मैरी तीन बच्चों की मां होने के बावजूद वर्ल्ड चैम्पियन बनीं. 
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4- धनराज पिल्लई (हॉकी) 
मेजर ध्यानचंद के बाद अगर भारतीय हॉकी में किसी ने नाम कमाया तो वो थे धनराज पिल्लई. धनराज देश के लिए 339 मैच खेले इस दौरान उन्होंने सबसे अधिक 170 गोल ठोके. हॉकी का ये कोहिनूर भी एक बेहद ग़रीब तमिल परिवार से ताल्लुक रखता है. उनके पिता एक फ़ैक्ट्री में काम किया करते थे. देश के लिए दो दशक से अधिक खेलने वाले धनराज ने नब्बे के दौर में तमाम मुश्किलों से लड़ते हुए भारतीय टीम तक का सफ़र तय किया था. 
5- विजेंद्र सिंह (बॉक्सिंग) 
पूर्व ओलिंपियन विजेंद्र सिंह हरियाणा के भिवानी ज़िले से हैं. विजेंद्र भारत के अब तक सबसे सफ़ल मुक्केबाज़ के तौर पर जाने जाते हैं. विजेंद्र भी बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं. बस ड्राइवर के बेटे विजेंद्र ने ग़रीबी से निकलकर वर्ल्ड लेवल पर नाम कमाया. एक वक़्त जहां वो पाई-पाई के लिए तरसते थे आज करोड़ों के मालिक हैं. विजेंद्र वर्तमान में WBO Asia Pacific Super Middleweight और WBO Oriental Super Middleweight चैम्पियन हैं. 
6- सुशील कुमार (रेसलिंग) 
रेसलर सुशील कुमार ने साल 2008 के बीजिंग ओलंपिक में ब्रोंज़ मेडल और साल 2012 लंदन ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीता था. सुशील लगातार दो ओलंपिक मुकाबलों में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी हैं. सुशील के पिता डीटीसी में बस ड्राइवर थे. पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो किसी स्पोर्ट्स अकेडमी में ट्रेनिंग ले सके, इसलिए उन्होंने गांव के अखाड़ों में ही सतपाल पहलवान से ट्रेनिंग ली. मुश्किल हालातों के बावजूद सुशील ओलंपिक पदक विजेता बने.  
7- सरदारा सिंह (हॉकी) 


भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान सरदारा सिंह भी बेहद ग़रीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं. बेटे को नंगे पैर प्रैक्टिस न करनी पड़े इसलिए उनकी मां को लोगों से पैसे उधार लेने पड़ते थे. सरदारा सबसे कम उम्र में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान बने थे. साल 2014 में उन्होंने अपनी कप्तानी में 'एशियन गेम्स' में भारत को गोल्ड दिलाया था. 


इन खिलाड़ियों के बारे में बताने का हमारा मक़सद बस यही था कि चाहे मुश्किलें कैसी भी क्यों न हो हमें हिम्मत नहीं हरनी चाहिए. 




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