मात्र दो दशक पहले जब कोई जानवर मरता था तब उसे खाने के लिए सैकड़ों की संख्या में गिद्ध आते थे ..अचानक गिद्ध विलुप्त क्यों हो गए?

भारतीय गिद्धों की मौत के कारण :
1. बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के विश्लेषण के अनुसार डिक्लोफेनाक (Diclofenac) का पशु-चिकित्सा में उपयोग भारत में गिद्धों के लिए मुख्य खतरा है। डिक्लोफेनाक एक गैर–स्टेरॉयडल सूजन–रोधी दवा (NSAID) है जो मांसपेशियों की दर्द के समय लगाए जाने वाले लगभग सभी प्रकार के जेलों, क्रीमों और स्प्रे का एक घटक है।
2. यह दवा पशुओं पर भी समान रूप से प्रभावी होती है और जब कामकाजी पशुओं को इसे दिया जाता है तो उनके जोड़ों का दर्द कम हो जाता है और उन्हें अधिक समय तक कामकाजी बनाए रखता है। इसलिए पशुओं में दर्द निवारक के तौर पर डिक्लोफेनाक का बड़े पैमाने पर प्रयोग भारत में गिद्धों की मौत की वजह है।
चूंकि गुर्दों को इस दवा को शरीर से बाहर करने में काफी समय लग जाता है इसलिए मृत्यु के बाद भी यह पशु के शरीर में मौजूद रहता है। चूंकि गिद्ध मुर्दाखोर होते हैं और इसलिए वे मृत पशुओं के शवों को भोजन के तौर पर ग्रहण करने लगते हैं। एक बार जब वे डिक्लोफेनाक संदूषित मांस का सेवन कर लेते हैं तो उनके गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं और उनकी मौत हो जाती है।
3. भारत में गिद्धों के लिए कीटनाशक प्रदूषण भी एक खतरा है। क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बन डी.डी.टी (डाइक्लोरो डाइफिनाइल ट्राईक्लोरोइथेन) का प्रयोग कीटनाशक के तौर पर किया जाता है। यह गिद्धों के शरीर में खाद्य श्रृंखला के माध्यम से प्रवेश करता है जहां यह एस्ट्रोजन हार्मोन की गतिविधि को प्रभावित करता है, परिणामस्वरूप अंड कोश कमजोर हो जाता है। इससे अंडों की असामयिक सोने की प्रक्रिया होती है जिससे भ्रूण की मौत हो जाती है।
4. शिकारी हाथी, बाघ, गैंडा, हिरण और भालू जैसे जंगली पशुओं के चमड़े, दांत, कस्तूरी, सींग, शाखायुक्त सींग और बाइल को निकालने के लिए जहरीले भोजन का सहारा लेते हैं। जब जहरीला भोजन खा कर मरने वाले पशुओं के शवों को गिद्ध खाते हैं तो वे भी मर जाते हैं।
भारत में गिद्धों का कैसे संरक्षित करें:
गिद्धों का समाप्त होता जाना गंभीर चिंता का विषय है और इन विलुप्तप्राय होते पक्षियों को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की जाने की आवश्यकता है। भारत में गिद्धों को संरक्षित करने के लिए निम्नलिखित रणनीति के अपनाए जाने की जरूरत है।
1. डिक्लोफेनाक का कारगर विकल्प विकसित करने और उपलब्ध विकल्प मेलॉक्सिकैम पर सब्सिडी देने की जरूरत है।
2. जंगलों में गिद्धों की, खास कर गिद्ध के विलुप्तप्राय और संकटग्रस्त प्रजातियों की फिर से वापसी के उद्देश्य से Caxtive-breeding programme को बड़े पैमाने पर शुरु करने की आवश्यकता है।
3. गिद्धों के लिए विषमुक्त भोजन, स्वच्छ पानी, बोन चिप्स और सुरक्षा एवं स्वतंत्रता हेतु तार से घेरे हुए खुली छत वाले बसेरों के माध्यम से गिद्ध फीडिंग स्टेशन की स्थापना करने की जरूरत है।
4. सरकार को पारसी शवदाहगृहों के पास शवों के अपवहन हेतु गिद्ध अभयारण्य बनाने चाहिए। पर्याप्त भोजन की उपलब्धता से गिद्धों की आबादी को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
5. डी.डी.टी. जैसे क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बन्स के प्रयोग पर तत्काल प्रतिबंध लगाए जाने की आवश्यकता है।
गिद्धों से लाभः
1. गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी होते हैं। ये मृत और सड़ रहे पशुओं के शवों को भोजन के तौर पर खाते हैं और इस प्रकार मिट्टी में खनिजों की वापसी की प्रक्रिया को बढ़ाते बैं। इसके अलावा, मृत शवों को समाप्त कर वे संक्रामक बीमारियों को फैलने से भी रोकते हैं। गिद्धों की अनुपस्थिति में मूषक और आवारा कुत्तों जैसे पशुओं द्वारा रेबीज जैसी बीमारी के प्रसार को बढ़ाने की संभावना बढ़ जाएगी।
2. भारत में पारसी धर्म (पारसी समुदाय) के अनुयायी अपने मृत शवों के निराकरण के लिए परंपरागत रूप से गिद्धों पर निर्भर करते हैं। इसलिए, कई सदियों से भारत के गिद्ध पारसी धर्म के लोगों के लिए महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवा प्रदान कर रहे हैं।

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