भारत में कोचिंग संस्थानों की कुछ कठोर वास्तविकता और गंदे व्यवसाय तकनीक क्या हैं?

क्या आपने कभी इस तथ्य पर गौर किया हैं कि हर साल जो छात्र आईआईटी जेईई परीक्षा में टॉप 100 में चयनित होते हैं उनमें से कितने छात्र बिना कोचिंग कि मदद के या सहायता के चयनित होते हैं।
हर साल जो छात्र जेईई एडवांस में टॉप मारता हैं उसका चेहरा अखबार के सबसे पहले पन्ने पर कोचिंग संस्थान द्वारा छापा जाता हैं।
ऐसा इतने सालों में आपने कभी नहीँ देखा होगा कि किसी टॉपर छात्र ने बिना कोचिंग कि सहायता के पहला स्थान प्राप्त किया हैं।

अब बात करते हैं कोचिंग संस्थानों कि—
हर कोचिंग संस्थानों में शिक्षक छात्रों को तीन टुकड़ो में बाँट देते हैं।
  1. वे छात्र जो हर कोचिंग संस्थान की जान होते हैं।ये छात्र हर टेस्ट सीरीज में अव्वल आते हैं हर ओलिंपियाड में उत्तीर्ण होते हैं। ऐसे छात्रों से फ़ीस नहीँ ली जाती उल्टा इनकी हर जरूरतों का ख्याल रखा जाता हैं क्योंकि आगे चल कर यही छात्र कोचिंग संस्थान को आईआईटी या मेडिकल में अच्छी रैंक लाकर देते हैं। इन्हें सबसे अच्छे सब्जेक्ट टीचर मिलते हैं जो इनकी मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
  2. फिर आते हैं वे छात्र जो टॉपर नहीँ होते लेकिन हर परीक्षा और टेस्ट में अच्छा प्रदर्शन करते हैं। इनमे से कुछ छात्रों को प्रोत्साहन के लिए थोड़ी स्कॉलरशिप दे दी जाती हैं। इन्हें इतने अच्छे शिक्षक नहीँ मिलते इन छात्रों के डाउट्स भी हर बार क्लियर नहीँ हों पाते।ये छात्र बहुत मेहनती होते हैं।
  1. ये वे छात्र हैं जो आपने माता-पिता के दबाव में आकर ऐसे कोचिंग संस्थानों में प्रवेश ले लेते हैं। कुछ छात्र मेहनत जरूर करते हैं लेकिन ऐसी बैच को न तो अच्छे शिक्षक मिलते हैं और न ही सुख सुविधाएं और न ही अच्छे नोट्स। कई छात्रों को पहले दिन से पता होता हैं कि वे समय व्यर्थ कर रहे हैं लेकिन फिर भी वे दबाव के कारण हर दिन कोचिंग जाते जरूर हैं लेकिन पिछली सीट पर बैठकर टाइम पास करते हैं।
कोचिंग संस्थान हमेशा पहले प्रकार के छात्रों पर ध्यान देते हैं। वे माँ बाप को यह भरोसा दिलाते हैं कि उनकी कोचिंग में 10-10 घंटे बैठे रहने से छात्रों का सिलेक्शन हो जाएगा।
हाल ही में यूट्यूब पर एक टेड टॉक वीडियो देखा जिसमे बताया गया कि हैदराबाद के एक कोचिंग संस्थान ने बच्चों के कमरे कि खिड़की पर जालिया लगा दी ताकि बच्चे बाहर न देख सके।उन्हें फ़ोन रखने कि मनाही होती हैं उसी के साथ कोचिंग ख़त्म होने के बाद एक बाउंसर छात्रों के झुंड को उनके हॉस्टल तक छोड़ने जाता था ताकि कोई बच्चा इधर उधर न निकल जाए।
चाहे कोटा हो या मुम्बई हो या इंदौर हर छात्रों की स्थिती एक जैसी ही हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों को jee advance के सवाल हल करना नहीँ आते और यह सच है। स्टेट बोर्ड के शिक्षकों कि हालत तो और भी ख़राब हैं और यह हर छात्र ने महसूस भी किया होगा इसीलिए ऐसे कोचिंग संस्थान इतने आगे बड़ चुके हैं।
इंजीनियरिंग और मेडिकल कि तैयारी करवाने वाले कोचिंग संस्थानों का बिज़नस अब हजारों करोड़ में पहुँच चुका हैं कुछ कोचिंग संस्थानों कि ब्रांच आज हर शहर में नज़र आ जाएंगी।
हर कोचिंग संस्थान में छात्रों को बार बार यह याद दिलाया जाता हैं कि आईआईटी और एम्स में दाखिला लेने से ही वे सफल होंगे।टेस्ट में कम अंक आने पर छात्रों को अपमानित भी किया जाता हैं । इसी कारण दबाव में आकर छात्र खुदखुशी जैसा भयानक कदम उठा लेते हैं।

कुछ कोचिंग संस्थान तो टॉपर छात्रों कि खरीद फरोख्त भी करते हैं और लाखों रुपये देने से भी नहीँ कतराते क्योंकि अच्छी रैंक लाने वाले छात्र उनके लिए तुरुप का इक्का होते हैं जिनकी मार्केटिंग कर वे दूसरे छात्रों को अपनी कोचिंग संस्थान में एडमिशन लेने के लिए लुभाते हैं।
यह बड़े ही दुःख कि बात हैं कि अगर किसी छात्र का कंप्यूटर ज्ञान बहुत अच्छा भी हो या वह छात्र कोडिंग में कितना भी अव्वल क्यों न हो उसे आईआईटी में एडमिशन नहीं मिलेगा।
……क्योंकि आईआईटी में कंप्यूटर साइंस कि सीट के लिए एक छात्र को कंप्यूटर का ज्ञान हो न हो लेकिन उसे फिनॉल या बेंज़ीन कैसे बनाया जाता हैं वह पता होना चाहिए या प्रोजेक्टाइल मोशन के फॉर्मूले रटे होने चाहिए।
( छवि स्त्रोत :- गूगल )

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