नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सीएम नीतीश कुमार ने अभी से राजनीतिक समीकरण को साधने की तैयारी कर ली है. इसी कड़ी में नीतीश ने आरजेडी के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अली अशरफ फातमी को जेडीयू में शामिल कराया. मिलन समारोह के दौरान बिहार के सीएम और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार खुद मौजूद नहीं थे लेकिन फातमी ने खुलासा किया कि जेडीयू में आने से पहले उन्होंने नीतीश के साथ घण्टों समय बिताया.
फातमी की जेडीयू में आने से पहले उनकी तीन उच्चस्तरीय बैठक नीतीश कुमार के साथ हुई. फातमी ने इसे साझा करते हुए बताया कि उनकी पहली बैठक करीब ढाई घंटे की हुई और दूसरी बैठक भी ढाई घंटे से कुछ अधिक देर हुई थी और तीसरी और अंतिम मीटिंग उनकी करीब सवा घंटे की हुई थी. फातमी का कहना था कि मैं इनके कामों को पहले से जनता था और जब मीटिंग हुई तो और करीब से इनको और इनके कामों को जानने का मौका मिला कि किस तरह से इन्होंने खुद को बिहार के विकास के लिए सौंप दिया है. इन्होंने कैसे बिहार के लिए अच्छी सड़क, बिजली और शिक्षा व्यवस्था को पहले से बेहतर किया.
2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में अब बस कुछ ही महीने बचे हैं ऐसे में जेडीयू ने एक बड़ी बाजी मारी है. दरअसल, में बिहार में मौजूदा सरकार एनडीए की है जिसमें जेडीयू की भूमिका बड़ी करने में बिहार के मुखिया नीतीश खुद जुटे हैं. नीतीश ने मुस्लिम वोट को अपने पाले में लाने की पुरजोर कोशिश भी शुरू से ही की है. यही कारण रहा है कि एनडीए में रहने के बाद भी जेडीयू उनके कई एजेंडे पर साथ नही देती. जैसे तीन तलाक मुद्दा हो या राम मंदिर से जुड़ा मुद्दा हो या फिर कश्मीर का मुद्दा रहा हो जेडीयू हमेशा से इनका विरोध किया है. इसका एक मात्र कारण है नीतीश कुमार का खुद को सेक्युलर इमेज में दिखाना. नीतीश कुमार ने आरजेडी के आज मुस्लिम समुदाय से आने वाले मिथिलांचल के एक कद्दावर नेता को अपने पाले में लाया है जिसकी पकड़ मिथिलांचल में जबरदस्त है. इसके पहले वो बाढ़ की समीक्षा के दौरान आरजेडी नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के साथ चाय नाश्ता कर सन्देश दे चुके हैं. वहीं कांग्रेस के नेता शकील अहमद खान से भी नज़दीकी बढ़ गई है. नीतीश बिहार के तमाम मुस्लिम नेताओं के सम्पर्क में हैं.
अली अशरफ फातमी कौन हैं?
अली अशरफ फातमी पेशे से एक इंजीनियर थे. देश से बाहर पैसा कमाने गए थे पर वो वहां से लौट आए. क्योंकि वो अपने क्षेत्र के लिए कुछ करना चाहते थे. फातमी का करियर शुरू से राजनीतिक रहा है. वो छात्र जीवन से ही राजनीति में हिस्सा ले चुके थे. छात्र जीवन में ही उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जनरल सेक्रेटरी बनाया गया. बाद में वो सऊदी चले गए पर यहां के लोगों के लिए कुछ करने का जज्बा तब भी उनके मन में था जिसने उन्हें 1989 में भारत आने पर विवश किया. मूल रूप से दरभंगा से आने वाले फातमी का राजनीतिक सफर भी दिलचस्प रहा है. वे चार बार सांसद रहे और भारत सरकार में भी मंत्री बने.
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