रोजगार मेला: मेला का मेला और बीजेपी का प्रचार मुफ्त में



लाउडस्पीकर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रिकार्डेड भाषण चल रहा है. इसमें वो एक कारपेंटर का उदाहरण देकर बताते हैं कि कैसे एक कारपेंटर योग शिक्षक बना और उसकी आमदनी दोगुनी हो गई. बगल में खड़े दुबले पतले शख्स हरदेव बुदबुदाते हुए कहते हैं, "मैं भी दिन में किराये का ऑटो चलाता हूं और रात को कॉलोनी में गार्ड का काम. एक नौकरी से घर कहां चल पाता है."
13 सितंबर, दिन शुक्रवार, सुबह के 11 बज रहे है. चिलचिलाती धूप में सैकड़ों बेरोजगार युवा हौज़ खास के बेगमपुर गांव में स्थित नगर निगम के पार्क में जमा हुए हैं. यह पार्क छठ पूजा पार्क के नाम से भी जाना जाता है. जहां प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत रोजगार मेले का आयोजन किया गया है.
हौज़ खास मेट्रो स्टेशन से महज एक किलोमीटर दूर स्थित इस पार्क तक पहुंचने के दौरान रास्ते में सैकड़ों की संख्या में पोस्टर और बैनर चिपके नजर आते हैं. इसमें से ज्यादातर भाजपा नेतृ आरती मेहरा ने लगवाए हैं. आरती मेहरा, बीजेपी की राष्ट्रीय सचिव रह चुकी हैं. दीवारों पर चिपके पोस्टरों और आसमान में लटकाए गए बैनर पर लिखा हुआ है, ‘‘5वीं, 6वीं, 10वीं, 12वीं, स्नातक, डिप्लोमा पास व 35 वर्ष आयु तक के लड़के व लड़कियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे.’’
पार्क में बने छोटे से पंडाल के अंदर स्टेज भी बना हुआ है. पंडाल के अंदर किनारे-किनारे छह से सात स्टॉल लगे हुए है जिसके इर्द-गिर्द युवा कंपनियों के तरफ से आए विशेषज्ञों से जानकारी ले रहे हैं. वहीं स्टेज पर बीजेपी दिल्ली के नेता बारी-बारी से भाषण देते नजर आते हैं.
आरती मेहरा प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ में एक शेर कहती हैं, ‘‘पत्थर जो चोट से टूट गया कंकर हो गया, पत्थर जो चोट सह गया शंकर हो गया. हमारे प्रधानमंत्री शंकरजी जैसे हैं. वे जो चाहते हैं वो करते हैं. उन्होंने गरीबी को खत्म करके युवाओं को सबल बनाने की ठानी है. तो हम उनके सपनों को सकार करेंगे. छल करने वाले कांग्रेस और बाकी दलों का आज हाल सब देख रहे हैं. क्या हुआ. कश्मीर में आप लोगों ने देखा. सालों से चली आ रही गलत नीतियों को किस तरह एक झटके में मोदीजी ने खत्म किया.’’
एक बार को तो यह पंडाल रोजगार मेले से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी का प्रचार स्थल लगने लगता है. आरके पुरम विधानसभा के पूर्व विधायक अनिल शर्मा भी लोगों को संबोधित करते हैं. हालांकि इन नेताओं को सुनने वाले गिनती के 20-25 लोग ही हैं. ज्जोयादातर बेगमपुर गांव के स्थानीय निवासी है. यहां आए ज्यादातर युवाओं की निगाहें बेहतर नौकरी की तलाश में दिखीं.
अपने पति और छोटे बच्चे के साथ नौकरी की तलाश में आई इलाहाबाद की गुंजन 2012 में ही बीएड कर चुकी हैं. उसके बाद से उनके पास रोजगार नहीं हैं. उनके पति यहां एक प्राइवेट नौकरी करते हैं जिससे उनका परिवार चलता है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए गुंजन कहती हैं, ‘‘बीएड करने के बाद दो-तीन साल नौकरी की फिर नौकरी चली गई. उसके बाद से अब तक इंतजार ही कर रही हूं. रोजगार की बड़ी बुरी हालात है. ऐसा नहीं की नौकरी नहीं मिलती पर योग्यता के हिसाब से वेतन नहीं देता कोई. सब 10 हज़ार रुपए देते हैं.’’
गुंजन के बगल में खड़े उनके पति कहते हैं, ‘‘मेरे पास तो नौकरी है. लेकिन एक नौकरी से घर बस चल पाता है. हम लोग जी नहीं पाते हैं.’’
हाल ही में मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कोटा में कहा था कि जिसे नौकरी नहीं मिलती वो बीएड कर लेता है जिस वजह से बेरोजगारों की फौज खड़ी हो जाती है.
निशंक के बयान को लेकर जब गुंजन से सवाल किया गया तो वो हंसने लगी. गुंजन कहती हैं, ‘‘वे बड़े आदमी हैं. क्या कहें उनको. लेकिन वे गलत बोल रहे हैं. बीएड की पढ़ाई के लिए भी मेहनत करनी पड़ती है. वो कह रहे हैं कि बीएड करने वाले बेरोजगारों की फौज खड़ी रहती है. लेकिन देश के हर राज्य में शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं. उसे सरकार भर दें तो बेरोजगारों की संख्या कम हो जाएगी. निशंक साहब ऐसा बोलकर उन तमाम युवाओं का अपमान कर रहे हैं.’’
बारह बजे आरती मेहरा स्टेज से घोषणा करती है कि अब तक 500 लोगों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया है. हम चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग हमारे इस कार्यक्रम का फायदा उठाएं.
यहां नौकरी की तलाश में बिहार के नवादा जिले के तीन लोग पहुंचे हैं. जिसमें से एक 35 साल के राजकुमार हैं. राजकुमार दिल्ली में गार्ड की नौकरी करते हैं. वे बताते हैं, ‘‘12 घंटे रोजाना काम करता हूं. कभी छुट्टी नहीं मिलती है. पर्व-त्यौहार के दिन भी काम पर जाना पड़ता है. और सैलरी मिलती है सिर्फ नौ हज़ार रुपए. इससे काम चलेगा? गरीब परिवार से होने के कारण बहुत पढ़ नहीं पाए. 10वीं पास करने के बाद पुलिस और सेना की तैयारी जुट गया. कई जगह दौड़ निकाली भी, लेकिन आगे कुछ हो नहीं पाया. फिर दिल्ली आ गया. तब से गार्ड की नौकरी कर रहा हूं. यहां आए थे कि कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी लेकिन यहां तो नौकरी नहीं मिल रही है. ट्रेनिंग के लिए रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं. इसके बाद ट्रेनिंग करना पड़ेगा फिर जाकर कोई नौकरी मिलेगी. मिल ही जाएगी यह भी कन्फर्म नहीं बता रहे हैं.’’
35 साल के राजकुमार
बैनरों-पोस्टरों में रोजगार मेला भले लिखा गया है, लेकिन यहां लगे हाथ किसी को नौकरी ऑफर नहीं की जा रही थी. दरअसल, कौशल विकास योजना के तहत यहां अलग-अलग कंपनियां आई हुई हैं. यहां आने वाले युवाओं का रजिस्ट्रेशन कराया जा रहा है. इसके बाद ओखला स्थित प्रधानमंत्री कौशल केंद्र पर उन्हें ट्रेनिंग दी जाएगी. यहां से ट्रेनिंग लेने के बाद युवाओं को अलग-अलग सेक्टर में नौकरी दी जाएगी.
22 वर्षीय कोमल सैनी, जिन्होंने इसी साल जयपुर स्थित एनआईएमएस यूनिवर्सिटी से मेडिकल लैब टेक्नीशियन का कोर्स किया है, वो भी यहां नौकरी की तलाश में आई हैं. उनकी शिकायत है कि यहां एकाध कंपनियां ही आई हुई है. तीन साल की पढ़ाई और उसके साथ इंटर्नशिप करने के बाद भी ट्रेनिंग करनी पड़ेगी. उसके बाद आठ से दस हज़ार की नौकरी मिलेगी. बुरा हाल है यहां रोजगार का. पढ़ने के बाद भी नौकरी के लाले पड़े हुए है. पढ़ाई में 3 लाख से ज्यादा रुपए खर्च कर चुकी है और उसके बाद बेरोजगार हूं.’’
हरियाणा स्थित सरकारी पॉलिटेक्निक से डिप्लोमा कर रहे 20 वर्षीय रजनीश का कोर्स इसी साल पूरा होने वाला है. उससे पहले ही उनकी चिंता नौकरी को लेकर बढ़ गई है. रजनीश कहते हैं, ‘‘आपको पता ही है कि इंजीनियरिंग करके निकले लोगों को रोजगार मिलने में कितनी दिक्कतें आ रही है. इसीलिए पापा ने यहां भेज दिया है. लेकिन यहां एक ही ऑटोमोबाइल की कंपनियां आई हुई है. मुझे नहीं लगता कोई आने का कोई फायदा हुआ.’’
यहां टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज का भी एक स्टॉल लगा हुआ है. स्टॉल पर बैठे कंपनी के अधिकारी बताते हैं, ‘‘हमारे यहां होटल मैनेजमेंट के कोर्स है. जिसमें से कुछ फ्री है और कुछ के लिए युवाओं को पैसे देने होंगे. फीस ज्यादा नहीं है. हमारे यहां बारटेंडर का कोर्स है. यह तीन साल का है. इसमें युवाओं को हर महीने 3500 रुपए बतौर फीस देना होगा. शुरुआत के दो महीने हम उन्हें ट्रेनिंग करायेंगे उसके बाद टाटा के ही किसी होटल में काम पर लग जाते हैं. जहां उन्हें आठ से दस हज़ार रुपए मिलते है. इस दौरान वे हमें फीस भी देते रहते हैं.’’
यहां वही कंपनियां आई हैं जिसका स्किल इंडिया कार्यक्रम के तहत भारत सरकार से करार है. ये युवाओं को ट्रेनिंग देकर उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने का दावा करती हैं. इस कार्यक्रम की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 जुलाई 2015 में की. सरकार के पास वे आंकड़े तो हैं कि पिछले चार सालों में कितने युवाओं को ट्रेनिंग दी गई लेकिन इसमें से कितने को रोजगार मिला इसकी संख्या नहीं है.
कोमल सैनी
बढ़ती बेरोजगारी की स्थिति पर ओखला स्थित प्रधानमंत्री कौशल केंद्र के डायरेक्टर विराज कटारिया कहते हैं, ‘‘देखिए बेरोजगारी के लिए भारत में सरकार से ज्यादा लोग जिम्मेदार हैं. यहां रोजगार के मौके हैं, लेकिन काबिल लोगों की बेहद कमी है. जिनके पास पैसे हैं वो तो पढ़ लिख लेते हैं, लेकिन जिनके पास नहीं है वे कुछ सीखने की कोशिश नहीं करते हैं. तकनीकी काम सीखकर भी ठीक-ठाक पैसा कमाया जा सकता है.’’
विराज अपने सेंटर के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘हमारे यहां हर साल 1800 युवाओं को ट्रेनिंग देने की सुविधा है. हम इसमें से 80 प्रतिशत युवाओं को नौकरी दिला देते हैं. शुरुआत में सैलरी थोड़ी कम होती है, लेकिन एकाध साल में उन्हें बेहतर सैलरी मिलने लगती है. हमने आरती मेहराजी से संपर्क किया ताकि ज्यादा से ज्यादा युवाओं तक पहुंच सके. दोपहर 1 बजे तक रोजगार के लिए लगभग पांच सौ तक लोग रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं. शाम तक 700 से 800 लोगों के आने के अनुमान है.’’
पर इस पूरे कार्यक्रम का इस्तेमाल बीजेपी के नेता अपने प्रचार प्रसार के लिए कर रहे हैं. इस सवाल के जवाब में विराज कहते हैं, ‘‘हम इसमें क्या कर सकते हैं. लेकिन हमारा मकसद बस युवाओं को नौकरी देना है. इसके लिए हम यहां है.’’
एक रोजगार मेले को बीजेपी का प्रचार का सेंटर बना दिया गया है. इस सवाल के जवाब में आरती मेहरा कहती हैं, ‘‘इसमें गलती क्या है. आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है जो युवाओं के बारे में सोच रहे हैं. पहले की सरकारें सोचती नहीं थी. तो उनका गुणगान करना गलत नहीं है.’’
डिप्लोमा कर रहे 20 वर्षीय रजनीश
देश में बढ़ते बेरोजगारी के सवाल पर आरती मेहरा कहती हैं, ‘‘देखिए बेरोजगारी है, लेकिन यह सिर्फ हमारी सरकार की गलती नहीं है. पहले से स्थिति ख़राब रही है. हमारी सरकार धीरे-धीरे सही कर रही है. आने वाले समय में स्थिति बेहतर हो जाएगी.’’
धूप तेज होने लगी तो आने वालों की संख्या कम होने लगी. पार्क के गेट पर हमारी मुलाकात एक महिला से हुई. वो भी रोजगार मेले से निकल रही थी. महिला कहती हैं, ‘‘पूरा दिन खराब हो गया. यहां आने के लिए काम पर नहीं गई. यहां कोई काम भी नहीं मिला.’’

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