क्या आप 'सापेक्षता का सिध्दांत' समझा सकते हैं?

यह अल्बर्ट आइंस्टीन की खोज थी जिसने विज्ञान को नई सोच और दिशा दी थी। उन्होंने ब्रह्मांड के सम्बंध में नई सोच का निर्माण किया था। आइंस्टीन ने स्पेशल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी और जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में “Theory Of Relativity” को बताया था। सापेक्षता का सिद्धांत क्या है और इसके बारे में विस्तृत चर्चा इस पोस्ट में करेंगे। थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी को समझने के लिए स्पेस टाइम को समझना होगा।
उदाहरण के तौर पर आप किसी बस में बैठे हुए है और वह बस मान लीजिये 50 किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ्तार से चल रही है। आप बाहर की तरफ किसी व्यक्ति को देखते है तो वह व्यक्ति गतिशील दिखाई देता है। आप खुद को विराम अवस्था मे मानते हो। लेकिन अगर वह व्यक्ति आपको देखेगा तो उसे आप गतिशील लगेंगे और वह खुद विराम अवस्था में होगा। आप और वह व्यक्ति दोनों ही अपने अपने नजरिये से सही है।
इससे यह मालूम होता है कि गति सापेक्ष (Relative) होती है। किसी भी वस्तु की गति या विराम अवस्था का पता उसके रेफरेंस से पता चलता है। इसे ही “frame of reference” कहते है।
आइंस्टीन ने इस सिद्धांत में एक समीकरण भी दी थी। यह समीकरण ऊर्जा की समीकरण E= MC^2 कहलाती है। इसके अनुसार ऊर्जा को मास M में और मास M को ऊर्जा E में बदलना सम्भव है। आइंस्टीन की यह समीकरण आगे चलकर परमाणु बमो के आविष्कार की जननी बनी। आइंस्टीन ने अपनी इस थ्योरी में यह भी बताया कि ब्रह्मांड में प्रकाश की गति से तेज कुछ भी नही है। अगर प्रकाश की गति से जाना सम्भव हो जाये तो हम भविष्य की सैर कर सकते है। यह अल्बर्ट आइंस्टीन की विशेष सापेक्षता का सिद्धांत (Special Theory Of Relativity In Hindi) थी

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