आज के युवा तो समय बर्बादी को ही अपना काम कहते हैं। टीक टॉक पर मुजरा करते रहते हैं, यूट्यूब पर घंटो तक कॉमेडी वीडियोज देखते रहते हैं और प्रेम मोहब्बत के चक्रव्यूह में फंसे रहते हैं।
कुछ लोग तो पोर्न को ही सबकुछ मान बैठे है।पोर्न देखने की लत उन्हें बर्बाद कर रही है।वे अपने करियर पर ध्यान केंद्रित नही कर पा रहे हैं।
हमारी आज की युवा पीढ़ि शिक्षा से प्राप्त ताकत के चलते सफलता की नईं ऊंचाईयों पर पहुंच चुकी है तो वहीं कुछ प्रतिशत युवा बच्चे अपने माँ-बाप की खून-पसीने की कमाई को गुलछर्रों में उड़ाकर शायद मौज मस्ती, आवारागर्दी एवम् अनुशासनहीनता को ही जीवन का मर्म समझ बैठे हैं। भारत जैसा राष्ट्र जहां विश्व की सर्वाधिक युवा आबादी मौजूद है वहां युवाओं में बढ़ती अनुशासनहीनता बेहद चिंतनीय एवम् विचारणीय मुद्दा बन चुका है। कहते हैं, ‘‘युवा होना हर क्षण खतरे में जीना है और वृद्ध होना सुरक्षा की तलाश में भटकना है।’’ क्या वास्तव में, आज का युवा खतरे में जीना चाहता है (सकारात्मक संघर्ष/चुनौतियां) या पलायनवादी नीति पर चल रहा है ?
प्रेम, साहस, शक्ति, ऊर्जा और संकल्प का ही दूसरा नाम युवावस्था है और किसी भी राष्ट्र की तरक्की में वहां की युवा ताकत बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखती है। बेहतर रोजगार प्राप्ति की दिशा में पठन-पाठन और उच्च शिक्षा का अपना अलग महत्व है-जहां कुछ युवा इसके प्रति काफी सर्तक और गंभीर नज़र आते हैं तो वहीं भौतिकतावाद और नशीले पदार्थों की ओर उन्मुख कुछ युवा शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक दिवालिएपन के चलते अपना सर्वश्रैष्ठ देना तो दूर रहा उल्टे अपने-अपने शिक्षण संस्थानों, परिवार, समाज और देश के समक्ष गंभीर समस्याएं एवं चुनौतियां खड़ी करते नज़र आ रहे हैं। महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में पठन-पाठन के माहौल के विपरीत युवा उच्छृंखलता, फूहड़ता, फैशनबाजी, नशीले पदार्थों का सेवन और राजनीति मंें पड़कर वहां अनुशासनहीनता का खुलेआम प्रदर्शन कर रहे हैं। अमूमन रोजाना, प्रिंट और इलैक्ट्राॅनिक मीडिया ऐसे अनुशासनहीन युवाओं के कारनामों की ख़बरों से अटे पड़े रहते हैं। संस्कारों के अभाव और मानवीय मूल्यों में हृास के कारण हमारे युवा पतन की गर्त में धंसते चले जा रहे हैं। आज का युवा अपनी मादक पदार्थों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपराधी बनने से भी नहीं हिचकिचा रहा है। इसी अनुशासनहीनता के चलते हमारे कई पथभ्रष्ट युवा अलगाववादी, आतंकवादी, नस्लवादी, नक्सलवादी और साम्प्रदायिक विचारधारा के पैरोकारों के चंगुल में फंस जाते हैं।
पाश्चात्य संस्कृति का अंधाधुंध अनुसरण, अश्लील फिल्में और इंटरनेट की आजादी हमारी युवा पीढ़ि को संस्कारविहीन बनाकर सामाजिक पतन की ओर ले जा रही है। जाहिर है कि जब आधुनिकता की आड़ में हमारी युवा पीढ़ि की जीवन शैली बदल चुकी है तो वह सफलता पाने के लिए शार्टकट फार्मूलों को अपनाने से भला क्यों हिचकिचाएगी और यही सोच व व्यवहार उन्हें नैतिक पतन की ओर ले जा रहा है। यदि समय रहते हमारे अभिभावकों और नीति-निर्माताओं ने सुधारात्मक एवं उपचारात्मक उपाय न ढ़ूंढ़े तो निःसन्देह हमारी युवा पीढ़ि के पूर्णतया पथभ्रष्ट हो जाने की प्रबल आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
आज का युवा भटका हुआ है उसे सही मार्गदर्शन की जरूरत है।
धन्यवाद ।
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