क्यों पुन्या प्रसून बाजपाई और अभिसार शर्मा जैसे पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया गया? उनकी क्या गलती थी?

“जल में रह कर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता”
जिस पार्टी की सरकार हो, आप उसके ख़िलाफ़ बोले जाते हो तो आप के “अच्छे दिन जाएँगे”.
बात अगर मीडिया की निष्पक्षता की हो या मीडिया में सरकार की दख़लन्दाज़ी की, ये दोनों हमेशा से सवालों के कटघरे में खड़े रहे हैं।
मीडिया, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है, जिसका कार्य सूचना प्रदान करना और जन हित बरक़रार रखना था, ने ख़ुद को लाभपूर्ण व्यवसाय निर्मित करने की इकाई में ढाल लिया है, अब वे ख़बरें बताते नहीं वरन ख़बरों को बेचते हैं। अब पहले मेवा है बाद में सेवा है।
दूसरी ओर सरकार है, अब सरकार भी भला ये क्यूँ चाहेगी कि मीडिया की रिपोर्टिंग के चलते जनता में सरकार के प्रति विश्वास कम हो? अगला चुनाव भी तो जीतना है। इसलिए सरकार द्वारा मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिशें की जाती रहीं है जो किसी से छुपी नहीं है।
अब एक आम नागरिक के हिसाब से न्यूज़ चैनल की हर ख़बर में कितना सच, कितना झूठ है? ये सब आपके राजनैतिक परिस्थितियों के आकलन की समझ पर निर्भर करता है।
तो ख़बर यह है कि दो ख़बरदारों उर्फ़ जर्नलिस्ट्स को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। ये पत्रकार हैं पुण्य प्रसून बाजपेयी और अभिसार शर्मा।
दोनों ही अनुभवी व पेशेवर पत्रकार हैं व दोनों ही भारत के प्रतिष्ठित पत्रकारिता अवार्ड “रामनाथ गोयनका अवार्ड” से नवाजे जा चुके हैं। रामनाथ गोयनका अवार्ड देश के निष्पक्ष पत्रकार को दिया जाता है। उस पत्रकार को जिसने किसी भी राजनीतिक पार्टी या धर्म का पक्ष लिए बिना सही पत्रकारिता की है।
आइए पहले बात करते हैं पुण्य प्रसून बाजपेयी जी की। पुण्य प्रसून बाजपेयी ने अपने करियर में कई समाचार नेटवर्कों पर काम किया है, जिसमें मुख्यतः आज तक, जी न्यूज़, NDTV, सहारा समय, ABP न्यूज़ शामिल है. ये मुद्दा जुड़ा है ABP न्यूज़ से। जहां उन्होंने 2018 में चार महीने के लिए “मास्टरस्ट्रोक” कार्यक्रम की मेजबानी की।
यह शो केंद्र सरकार की नीतियों और उनके द्वारा किए जा रहे दावों की आलोचना स्वयं द्वारा जुटाए गए तथ्यों के आधार पर करता था। इसी के चलते चैनल ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और उनके द्वारा चलाए गए विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के लाभार्थियों के बीच “मन की बात” के एक वीडियो इंटरैक्शन के बारे में, अपनी कहानी में सरकार की आलोचना की थी।
छत्तीसगढ़ की एक प्रतिभागी महिला चंद्रमणि कौशिक ने मोदी को “मन की बात” शो में बताया कि केंद्र सरकार की खेती आधारित योजना की वजह से उनकी आय दोगुनी हो गई है। दो हफ्ते बाद, एबीपी न्यूज़ के पत्रकार जो बाद में दावे को सत्यापित करने के लिए कौशिक के पास गए थे, में मास्टरस्ट्रोक ने खुलासा किया कि झूठे दावे करने के लिए भाजपा के अधिकारियों द्वारा चन्द्रमणि कौशिक को प्रलोभन देकर दबाव बनाया गया था।
ज़ाहिर सी बात है ABP न्यूज़ के इस फ़ैक्ट चेक के चलते केंद्र सरकार असहज हो गयी। कथित तौर पर कार्यक्रम के प्रसारण में सैटेलाइट लिंक से प्रसारण में बाधा पहुँचाई गयी। फिर पतंजलि सहित कुछ विज्ञापनदाताओं ने अपने विज्ञापन चैनल से हटा लिए हैं। इस दबाव में, पुण्य प्रसून बाजपेयी को अगस्त 2018 चैनल से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। उनका पिछला रिकौर्ड भी बताता है कि बाजपेयी की हमेशा से सत्ताविरोधी छवि रही है.
ये भी कहा गया कि “बाजपेयी ने भाजपायी होने से मना किया तो तो उनको इस्तीफ़ा देना पड़ा”
इनके साथ ABP न्यूज़ के एक मुख्य अधिकारी मिलिंद खांडेकर को भी बाहर का रास्ता दिखाया गया।
अब आते हैं पत्रकार अभिसार शर्मा पर। यह बीबीसी, NDTV, आज तक, जी न्यूज़ और ABP न्यूज़ के लिए काम कर चुके हैं। इनका भी मामला ABP न्यूज़ से ही जुड़ा है।
मिलिंद खांडेकर और पुण्य प्रसून बाजपेयी के इस्तीफे के अलावा उस समय चैनल के तेज तर्रार एंकर अभिसार शर्मा को 15 दिनों के लिए छुट्टी पर भेज दिया गया था। गौरतलब है कि अभिसार शर्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के सबसे भयंकर आलोचकों में से एक रहे हैं। अभिसार अपनी रिपोर्ट और वीडियो ब्लॉग के द्वारा मोदी सरकार की कमियों को उजागर करते आ रहे हैं।
बताया जा रहा है कि अभिसार ने उनके कार्यक्रम में मोदी की आलोचना न करने के बारे में दिए मैनेजमेंट के निर्देशों के बारे में सवाल किए थे
अभिसार के खिलाफ चैनल की कार्रवाई की वजह उनका बीते दिनों लखनऊ में नरेंद्र मोदी द्वारा प्रदेश की कानून व्यवस्था में हुए सुधार के दावे के खिलाफ बोलना था. अभिसार ने इस दावे के साथ मोदी के कार्यक्रम के अगले दिन हुई दो बर्बर हत्याओं का ज़िक्र किया था.
अभिसार ने जैसे ही प्रधानमंत्री का नाम लिया, वैसे ही न्यूज़रूम में खलबली मच गयी क्योंकि एबीपी न्यूज़ नेटवर्क के सीईओ अतिदेब सरकार ने फौरन इस कार्यक्रम को बंद करने को कहा. एबीपी न्यूज़रूम के सूत्र बताते हैं कि सरकार ने खांडेकर को तुरंत शो बंद न करने पर डांटा, जबकि खांडेकर यह कहते रहे कि ऐसा नहीं किया जा सकता क्योंकि 5 मिनट का बुलेटिन जा चुका है. जब यह बुलेटिन खत्म हुआ तब एंकर को दोबारा मोदी की आलोचना न करने का निर्देश दिया गया.
इसके बाद चैनल प्रबंधन ने उनसे कहा कि उन पर 15 दिन की रोक रहेगी. बताया जा रहा है कि ऐसे निर्देश कथित तौर पर चैनल के सभी एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसरों को दिए गए कि अब से मोदी की आलोचना करता कोई भी कंटेंट प्रसारित नहीं होगा.
इस मामले के कुछ दिनों बाद अभिसार शर्मा ने सितम्बर 2018 में अपने इस्तीफ़े का ऐलान कर दिया।
पुण्य प्रसून बाजपेयी और अभिसार शर्मा दोनों का इस्तीफ़ा उनकी केन्द्र सरकार की नीतियों की आलोचना और उनके दावों की पोल खोलने से जुड़ा है।
क्या दोनों पत्रकार निजी तौर पर नरेंद्र मोदी से दुश्मनी रखते हैं? या भाजपा के अलावा किसी अन्य पार्टी को सपोर्ट करते हैं?
या कि बस ख़बर को सनसनीखेज बना कर अपना उल्लू सीधा करते हैं?
या फिर
क्या सरकार ने मीडिया द्वारा सच बाहर निकाले जाने से घबराकर चैनल प्रबंधन पर दबाव बना कर उनको इस्तीफ़ा देने को मजबूर किया है।
फ़ैसला आपकी समझ पर कि आप केंद्र सरकार पे भरोसा करते हो कि न्यूज़ चैनल की निष्पक्षता पर?
ज्ञात रहे राजनीति वो सिक्का है जिसका तीसरा पहलू भी होता है!
इमिज सोर्स - गूगल
नोट :- पुण्य प्रसून वाजपेयी जिन्होंने ABP न्यूज़ के बाद हाल ही में सूर्या समाचार में पदभार सम्भाला था वहाँ से भी उनकी सेवाएँ समाप्त करने का नोटिस दे कर 31 मार्च 2019 तक नौकरी छोड़ने को कहा गया है।

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