अपनी हार को पूरे मन से स्वीकारने वाला भी विजेता से कम नहीं होता । आपको हारने के बाद खुद में सुधार करना चाहिए ।
प्रत्येक बड़े संघर्ष में एक वक्त ऐसा आता है जब संघर्षरत दो पक्षों में एक की हार हो जाती है । याद रखें, हार अप्रत्याशित होती है । हर लड़ाई जीत की प्रत्याशा में ही लड़ी जाती है ,जब तमाम प्रयासों , प्रयत्नों , कोशिशों , संघर्षों और जूनून के बावजूद आप हार जाते हैं और सामने वाला पक्ष जीत जाता है तब क्या करें ? क्या सामने वाले की जीत को मानने से इंकार कर देना श्रेयस्कर है ? क्या संघर्ष के परिणाम से , क्योंकिं वह हमारे पक्ष में नहीं है मुंह मोड़ना न्यायोचित है ? इन सबका एक ही उत्तर है – नहीं । जब भी विकट परिस्थिति आए तो उसे स्वीकार करना ही मनुष्यता है ।
हार से सीखता है इन्सान
हार को गरिमा से स्वीकार करना इन्सान की पहचान है । पराजित व्यक्ति आत्म विश्लेष्ण सूक्ष्मता से करता है । विजय से अधिक पराजय सिखाती है । हार मनुष्यता की ओर ले जाती है । कल तक जिसे महत्वहीन समझते थे , आज उसका औचित्य भी समझ आने लगता हैं । वह पराजीत होकर शर्मिन्दगी का अनुभव नहीं करता हैं, बल्कि सीखता हैं । हार से एक नया नजरिया विकसित होता है.
जीवटता का परिचय दें
बाजार के उतार-चढ़ाव से कई व्यापारी डूब जाते हैं । वे तात्कालिक पराजय को गरिमा से नहीं स्वीकारते हैं , और संघर्ष के बजाय पलायन का मार्ग अपनाते है । हार जाना तो आसान है ,पर यह कोई उचित राह  नहीं है । यहीं तो वे अवसर है कि जब आप अपनी जीवटता का परिचय दे सकते हैं और यकीं मानें की जीवन आपको फिर से शिखर पर ले जाएगा ।
हर हाल में लगे रहें
सत्तर के दशक के बाद अमिताभ बच्चन की फ़िल्में फ्लॉप हो रही थी और उनकी कंपनी एबीसीएल पर कर्ज बढ़ गया तो उन्होंने पूरी गरिमा से इस स्थिति को स्वीकार किया । उन्होंने टीवी कार्यक्रम ‘केबीसी’ किया । भाग्य ने उनका साथ दिया और कड़ी मेहनत से वे फिर से शीर्ष तक पहुंचे । वे हर हाल में कड़ी मेहनत करते रहें ।
हमेशा बड़प्पन दिखाएँ
हर बड़े युद्ध में एक मोर्चा गवां देना बुद्धिमानी मानी जाती है , बजाय कि युद्ध हार जाने के । हार को स्वीकार करना वीरों का काम है । कायर व्यक्ति हार को गरिमापूर्वक ग्रहण करने की बजाय तमाम दोष निकलने लगता है । किसी ने हार को गरिमा से स्वीकार किया है तो समझ लीजिये कि वह आतंरिक रूप से खिलाड़ी है । आपको हमेशा बड़प्पन दिखाना चाहिए ।
हार को गरिमा से ग्रहण करें
पोरस के हारने के बाद जब वह सिकंदर के सामने आया तो सिकन्दर ने पूछा , ‘तुम्हारे साथ कैसा व्यहार करें ‘ तो उसने कहा , ‘मेरे साथ वह व्यहार करें , जो एक राजा दुसरे के साथ करता है ।’ सिकन्दर ने उसे मुक्त कर दिया ।
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