कौन से क्रिकेटर को जितना सम्मान/प्रशंसा/पहचान मिली वह उससे अधिक के हकदार थे?

भारत की सरजर्मी पर कई महान क्रिकेटर पैदा हुए जिन्होंने 22 गज की पिच पर सालों तक राज किया, फिर वो चाहे सुनील गावस्कर रहे हो या फिर इस खेल के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर। लेकिन कुछ ऐसे खिलाड़ी भी रहे जिन्होंने भारत के लिए किया तो बहुत कुछ लेकिन वो जिस सम्मान के अधिकार रखते थे वो उनको नहीं मिल पाया।
साल 2007 के टी20 विश्व कप की जब भी बात होती है तो सिर्फ एक ही खिलाड़ी का नाम जुबान पर आता है युवराज सिंह, कौन भुला सकता है वो छह गेंदों पर लगाए छह छक्कों या फिर महज 12 गेंदों में खेली उस अर्धशतकीय पारी को। वर्ल्ड कप 2011 में भी युवराज मैन ऑफ द सीरीज रहे और बल्ले और गेंद दोनों से अहम योगदान दिया था। देश को वर्ल्ड कप जीताते-जीताते युवी खुद कैंसर जैसी बीमारी का शिकार हो गए ये उनको खुद मालूम नहीं चला।
विश्व कप के दौरान ही युवराज को इस गंभीर बीमारी ने तंग करना शुरु कर दिया था, लेकिन वो युवी का जुनून ही था जिसने उनका ध्यान भटकने तक नहीं दिया। पंजाब का ये शेर इसके बाद इलाज के दौरान काफी समय क्रिकेट से दूर रहा, जिसके बाद युवी भारतीय टीम की प्राथमिकता नहीं रहे। युवराज को बीससीआई द्वारा उतने मौके नहीं दिए गए जिसके शायद वो हकदार थे। जिस खिलाड़ी ने कैंसर जैसी बड़ी बीमारी की परवाह किए बगैर खुद को पूरी तरह से क्रिकेट के प्रति समर्पित कर दिया उसको बीसीसीआई ने चंद दिनों बाद ही भुला दिया।
कैंसर जैसी बीमारी युवी का हौसला कतई नहीं तोड़ पाई और मौत को हराकर पंजाब के इस जबांज खिलाड़ी ने साल 2012 के सितंबर महीने में मैदान पर न्यूजीलैंड के खिलाफ वापसी की। कैंसर ने शरीर जरुर तोड़ दी थी, लेकिन क्रिकेट के प्रति दीवानगी अभी भी वही थी बांए हाथ के इस बल्लेबाज की। 22 गज की पिच पर वापसी तो हुई लेकिन बल्ले से उतने रन नहीं निकले, कुछ मैचों के बाद ही बीसीसीआई ने विकल्प तलाशने शुरु कर दिए। 2014 विश्व कप फाइऩल मैच में खेली युवराज सिंह की धीमी पारी ने जैसे बीसीसीआई को युवराज सिंह को बाहर फेकना का मौका दे दिया जिसकी उनको तलाश थी।
लेकिन वो कहते है ना की घायल शेर और भी खतरनाक होता है, युवी ने साल 2017 में इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज में वापसी की। वो वापसी ऐसी रही जिसने लाखों आलोचकों के मुंह पर ताला दिया। युवराज ने इंग्लैंड के खिलाफ 127 गेंदों में अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ 150 रनों की पारी खेली जिसको देखकर लगा की पुराना युवराज सिंह फिर उसी जज्बे और हुंकार के साथ लौट आया है। लेकिन भारतीय क्रिकेट बोर्ड की नजरों में तो जैसे ये खिलाड़ी खटक रहा था, युवी को टीम से ड्रॉप किया गया और कारण बताया गया की वो फिटनेस के पैमाने पर पूरी तरह से खरे नहीं उतर सके है। लेकिन जब कैंसर जैसी बीमारी नहीं हरा सकी तो यह तो महज एक फिटनेस टेस्ट मात्र था, युवी ने कड़ी मेहनत की और यो-यो टेस्ट को पास किया। लेकिन इसके बाद बीसीसीआई ने उनकी हालिया फॉर्म का बहाना बनाकर उनको टीम से ड्रॉप कर दिया।
देश को दो विश्व दिलाने वाले खिलाड़ी को बीसीसीआई ने फेरवेल मैच का वादा तो किया लेकिन उनके लिए ऐसा कुछ इंतजाम नहीं किया। हालांकि युवराज ने हार नहीं मानी और वो घरेलू स्तर पर लगातार क्रिकेट खेलते रहे, आखिरकार बीसीसीआई की इस कदर अनदेखी को देखकर युवी ने 10 जून 2019 को क्रिकेट को अलविदा कह दिया। युवराज ने भारतीय क्रिकेट और देश को बहुत कुछ दिया, बांए हाथ के इस बल्लेबाज ने जिंदगी की जंग तो जीत ली लेकिन भारतीय क्रिकेट की गंदी राजनीति के आगे आखिरकार इस खिलाड़ी ने घुटने टेक दिए। जो सम्मान, जो इज्जत इस खिलाड़ी को मिलनी चाहिए थी वो बीसीसीआई ने नहीं दी, युवराज के इस तरह से रिटायर होने पर कई दिग्गज खिलाड़ियों ने भी बेहद अफसोस जताया था। युवराज ने क्रिकेट की फील्ड को जरुर अलविदा कह दिया लेकिन जब-जब भारतीय क्रिकेट के इतिहास के पन्ने पलटे जाएंगे तो युवराज सिंह का नाम सुनहरे अक्षरों में सबसे ऊपर ही नजर आएगा।

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