आपके प्रश्न पर मेरा मानना और यह कहना है कि देश के अधिकांश लोगों को ऐसा ही लगता है। वो इसलिए कि हम 2014 या उससे पहले के चुनाव प्रचार या देश के माहौल की बात करें तो कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही थी और उस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हुए थे। जिससे जनता परेशान थी औऱ एक ऐसे नेतृत्व की चाह में थी कि जो न केवल देश में से भष्टाचार खत्म करें बल्कि देश को विश्वपटल पर एक अलग स्थान भी दिलवाए।
उस वक्त भाजपा ने माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में अलग स्तर पर प्रचार चलाया। उसकी सबसे अच्छी टेग लाइन हम मोदी जी को लाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं ने जनता का ध्यान आकर्षित किया औऱ भाजपा नें एकतरफा बहुमत हासिल कर प्रचंड जीत हासिल की। एक ऐसी जीत जिसकी कल्पना न ही भाजपा ने की थी और न ही कांग्रेस ने ऐसी हार के बारे में सोचा था कभी।
लेकिन देखते ही देखते देश को नए- नए सपनों के मायाजाल में कुछ यूं फंसा लिया कि कहना और समझना मुश्किल है। आर्चाय चाणक्य ने कहा है कि जब देश का राजा राष्ट्रवाद औऱ देश के खतरे में होने की दुहाई के नाम पर राज करे और विभिन्न चुनाव जीते तो, यह कह सकते हैं कि राजा प्रजा को मुख्य व प्रमुख मुद्दों से भटका रहा है। यानि कि विकास, रोजगार, शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाएं आदि।
मैंने जितना इतिहास पढ़ा व समझा है स्वर्गीय व देश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंधिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित कर मीडिया को पंगु बना दिया था लेकिन वर्तमान में मीडिया व अन्य माध्यमों पर एक अघोषित आपातकालीन स्थिति का माहौल है। जहाँ मीडिया सिर्फ औऱ सिर्फ़ सरकार के गुणगान व पाकिस्तान के साथ युद्ध करवा रही है। जनसरोकार की बातें मानों डायनासोर की भांति विल्पुत होती जा रही है।
देश में युवाओं के बारे में औऱ उन्हें रोजगार देने के विषय को चौकीदार, चायवाला, फिट इंडिया, न्यू इंडिया, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, आर्टिकल 370 जैसे मुद्दों की हवा बना कर भटका दिया जा रहा है। क्या देश में बढ़ती मंदी व गिरती अर्थव्यवस्था पर फोकस करना ज्यादा जरूरी था या कश्मीर के मुद्दे पर अचानक से निर्णय लेकर अपनी नाकामयाबी को छुपाकर चुनाव जीतना बेहद महत्वपूर्ण हैं।
हम एक विकासशील देश हैं, जहाँ गरीब व गरीबों की स्थिति आज भी बेहद ही संवेदनशील है। देश का अन्नदाता समय के साथ और भी परेशान होते ही जा रहा है, महंगाई कम होने का नाम नहीं ले रही और हम नेहरू जी, इंदिरा जी, राजीव गांधी की बातों से ही बाहर नहीं आ पा रहे।
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