लोग बारीक बारीक काम के पचड़े में जयादा फसना नहीं चाहते, सबकुछ उनको आसानी से चाहिए।
मैं अपने इंजीनियरिंग के दिनों की बात बता रहा हूँ। पहले सेम्सटर में सारे ब्राँच के छात्रों का विषय कॉमन होता है, अब ग्राफ़िक्स विषय नाम से कौन भला इंजीनियर वाकिफ न होगा। एक शीट बनाने में घंटो लग जाते है, शाम को जल्दी से डिनर के बाद कोरी शीट लेके बैठते और सुबह चिड़ियो की चहचाहट के साथ एक शीट तैयार होती है।
पर जैसा कि हर मुश्किल चीज का जुगाड़ होता है, इस मुसीबत का भी जुगाड़ है,जिसका नाम है - गलास कॉपी। इसकी मदद से 6 घण्टे काम 10 मिनट में हो जाता है।
- इस जुगाड़ मे बस एक अंधेरा से रूम चाहिए, एक बल्ब या मोबाइल का फ़्लैश लाइट, एक ग्लास शीट और किसी से मांगी तैयार शीट चाहिए ।
- जलते हुए बल्ब के ऊपर, किताबो के सहारे, ऊपर ग्लास शीट रख देते थे, इस ग्लास के ऊपर फिर तैयार ड्राइंग, और अंत इसके ऊपर सादा शीट रखिये, और बस ओरिजिनल शीट की ड्राइंग की परछाई सादी शीट पर आ जाती है, और वहा वहाँ, पेंसिल घुमा देते। और इस तरह भारी भरकम इंस्ट्रूमेंट के बिना 10 मीनट में तैयार हो जाती है ड्राइंग।
तो एक दिन मैं ड्राइंग बनाकर गया हुआ था कॉलेज सबमिट करवाने, रूम खुला और ग्लास कॉपी का सेटअप वैसे ही छोड़कर गया था । 2–3 घंटे बाद कॉलेज से वापस आया तो देखता हूँ कि 10–11 बच्चे मेरे रूम में कोरी शीट लिए बैठे है, और बारी बारी से मेरे लगाए हुए कॉपी सेटअप पर कॉपी मार रहे है।
बस यही से आईडिया आया की रूम मेरा, बल्ब मेरा, ग्लास शीट मेरी, क्यों न इसको मोनेटाइज कर दिया जाय। और अभी तो सिर्फ शुरुआत है ड्राइंग सबमिट करवाने की तो भी इतने बच्चे आ रहे है, सबमिशन की अंतिम तारीख तक और भी बच्चे आएंगे कॉपी करने ।
ये आईडिया आते ही, मैने होस्टल लॉबी में अपने सामने की रूम जो भूतिया था, उसमे अंधेरा कर दिया, ग्लास कॉपी वाला जुगाड़ सेटअप कर दिया, और जो आये थे उस दिन कॉपी करने उनसे सेटअप यूज़ करने के लिए 30 रुपये प्रति व्यक्ति डील फाइनल कर लिया गया ।
शाम तक 400 रुपये आ गए थे लगभग।
ऐसा नही है कि ये सेटअप करने में कोई महारथ चाहिए, बस लोग आलसी थे, कहा से ग्लास शीट लाये, कैसे बल्ब लगाए इत्यदि उनके बस की बात न थी ।
अगले 4–5 दिन में 40–50 लोग और आये, डिमांड सप्लाई वाला खेल खेल हम भी समझते थे तो अब चार्ज बढ़ाकर 50 रुपया कर दिया गया था 😁😁
कंप्यूटर-आईटी की लड़कियां भी अब सम्पर्क में थी, पर वो बॉयज़ हॉस्टल में आये कैसे, सो उनके साथ डील हुई कि मैं बनी बनाई हुई शीट उपलब्ध कराऊंगा 120 रुपये में, इस तरह के 6–7 आर्डर लिए मैंने ।
इस तरह इन 4–5 दिनो मे 4000 की कमाई हो गयी थी । इन्वेस्टमेंट के नाम पे एक ग्लास शीट जो टूटी हुई खिड़की से निकाला गया था, 15 रूपये का एक बल्ब , और रूम तो सरकारी। अगर मार्केटिंग की गई होती तो और भी कमाया जा सकता था, लगभग 1000 बच्चे थे प्रथम वर्ष में।
( तस्वीर में - ग्लास कॉपी करता हुआ एक छात्र )
यही काम सेकंड ईयर में आने के बाद भी किया और आर्डर पहले वर्ष के छात्रों से लिया । फिर नही किया कभी क्योंकि खुद भी पढ़ना होता था !
आप भी बस नजर दौड़ाएं, पैसे कमाने का रास्ता दिख जाएगा । बाकि तो आप यूट्यूब-इंटरनेट से कितना भी आईडिया लेले फर्क नहीं पड़ेगा, आपको करना होगा।


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