जब कोरोना की वैक्सीन अभी खोजी नहीं गयी है, तो बहुत से मरीज कैसे ठीक हुए हैं?



चलिए हम आपको बताते है कि संक्रमित व्यक्ति कैसे ठीक हो रहा है…
कोरोना वायरस के इलाज को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब तक इसकी कोई दवा उपबल्ध नहीं है। दवा बनाने के लिए बहुत से देश लगातार कोशिश कर रहे हैं लेकिन फिलहाल जो लोग वायरस संक्रमण की वजह से भर्ती हैं उनका इलाज लक्षणों के आधार पर किया जा रहा है।
कोरोना संक्रमित मरीज़ों के इलाज के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भी गाइडलाइंस जारी की हैं।
इनके मुताबिक़, अलग-अलग लक्षणों वाले लोगों के इलाज के लिए अलग-अलग ट्रीटमेंट बताए गए हैं और दवाओं की मात्रा को लेकर भी सख़्त निर्देश हैं।
साधारण खांसी, ज़ुकाम या हल्के बुख़ार के लक्षण होने पर मरीज़ को तुरंत अस्पताल में भर्ती करने की ज़रूरत नहीं भी हो सकती और उन्हें दवाएं देकर इलाज जारी रखा जा सकता है। लेकिन जिन मरीज़ों को निमोनिया या गंभीर निमोनिया हो, सांस लेने में परेशानी हो, किडनी या दिल की बीमारी हो या फिर कोई भी ऐसी समस्या जिससे जान जाने का ख़तरा हो, उन्हें तुरंत आईसीयू में भर्ती करने और इलाज के निर्देश हैं।
दवाओं की मात्रा और कौन सी दवा किस मरीज़ पर इस्तेमाल की जा सकती है इसके लिए भी सख़्त निर्देश दिए गए हैं। डॉक्टर किसी भी मरीज़ को अपने मन मुताबिक दवाएं नहीं दे सकते।
अस्पतालों में जो मरीज़ भर्ती हो रहे हैं उन्हें लक्षणों के आधार पर ही दवाएं दी जा रही हैं और उनका इम्यून सिस्टम भी वायरस से लड़ने की कोशिश करता है. अस्पताल में भर्ती मरीज़ों को आइसोलेट करके रखा जाता है ताकि उनके ज़रिए किसी और तक ये वायरस न पहुंचे।
गंभीर मामलों में वायरस की वजह से निमोनिया बढ़ सकता है और फेफड़ों में जलन जैसी समस्या भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में मरीज़ को सांस लेने में परेशानी हो सकती है।
बेहद गंभीर स्थिति वाले मरीज़ों को ऑक्सीजन मास्क लगाए जाते हैं और हालत बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखने की ज़रूरत होगी। एक अनुमान के मुताबिक़, चार में से एक मामला इस हद तक गंभीर होता है कि उसे वेंटिलेटर पर रखने की ज़रूरत पड़ती है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंगम के वायरोलॉजिस्ट प्रो. जोनाथन बॉल बताते हैं कि अगर मरीज़ को श्वसन संबंधी परेशानी है तो उन्हें सपोर्ट सिस्टम की ज़रूरत पड़ती है। इससे दूसरे अंगों पर पड़ने वाले दबाव से राहत मिल सकती है।
मध्यम लक्षण वाले मरीज़ जिनका ब्लड प्रेशर घट-बढ़ रहा है उसे नियंत्रित करने के लिए इंट्रावेनस ड्रिप लगाए जा सकते हैं। डायरिया के मामलों में फ्लुइड (तरल पदार्थ) भी दिए जा सकते हैं। साथ ही दर्द रोकने के लिए भी कुछ दवाएं दी जा सकती हैं।
सवाई मान सिंह मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर सुधीर मेहता का कहना है कि डब्ल्यूएचओ और आईसीएमआर की गाइडलाइंस के तहत ही मरीज़ों का इलाज चल रहा है।
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया, ''गाइडलाइन में इस बात का ज़िक्र है कि हल्के लक्षण होने पर कैसा इलाज करना है और गंभीर लक्षण होने पर कैसी दवाएं देनी हैं। इसके पैरामीटर भी तय किए गए हैं- क्लीनिकल और बाई-केमिकल। जिनके आधार पर ही इलाज किया जा रहा है।
क्या एचआईवी की दवा कारगर है?
विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस और एचआईवी वायरस का एक जैसा मॉलिक्युलर स्ट्रक्चर होने के कारण मरीज़ों को ये एंटी ड्रग दिए जा सकते हैं।
एचआईवी एंटी ड्रग लोपिनाविर (LOPINAVIR) और रिटोनाविर (RITONAVIR) एंटी ड्रग देकर जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में तीन मरीज़ों का इलाज किया गया और वो कोरोना के संक्रमण से नेगेटिव हुए। इसे रेट्रोवायरल ड्रग भी कहा जाता है।
इन दवाओं का इस्तेमाल साल 2003 में सार्स (SARS) वायरस के इलाज में भी किया गया था। दरअसल उस वक़्त इस बात के सबूत मिले थे कि एचआईवी के मरीज़ जो ये दवाएं ले रहे थे और उन्हें सार्स से पीड़ित थे, उनका स्वास्थ्य जल्द बेहतर हो रहा था।
कुछ लोगों को एंटी-वायरल, एंटी बायोटिक्स के ज़रिए इलाज किया जा रहा है। ख़ासकर वो लोग जो आईसीयू में भर्ती हैं। लेकिन जो लोग अपने आप ठीक हो रहे हैं वो इम्युनिटी की वजह से हो रहे हैं।
प्रो. जोनाथन बॉल का भी मानना है कि सार्स और कोरोना दोनों लगभग एक जैसे ही हैं इसलिए ये दवाएं असर कर सकती हैं। हालांकि वो यह भी कहते हैं कि इन दवाओं के इस्तेमाल के लिए भी एक सीमा होनी चाहिए और उन्हीं लोगों पर उनका इस्तेमाल किया जाए जो बेहद गंभीर हों।
दिल्ली सरकार की ओर से कोरोना वायरस की समस्या से निपटने के लिए बनाई गई कार्ययोजना समिति के अध्यक्ष और यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) के निदेशक डॉ एस.के. सरीन का मानना है कि तीन-चार मरीज़ों के ठीक होने पर हम ये दावा नहीं कर सकते कि दवा सही साबित हो रही है। अगर बड़ी संख्या में लोग इससे ठीक हों तब हम कह सकते हैं कि ये कारगर दवा हो सकती है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने भी इसके लिए बाक़ायदा गाइडलाइन जारी कर कहा है कि किन मरीज़ों पर इस ड्रग का इस्तेमाल किया जा सकता है।
दूसरी ओर कुछ लोग ये सवाल भी उठा रहे हैं कि जब लक्षणों के आधार पर इलाज से कोरोना वायरस संक्रमण को दूर किया जा सकता है और लोग ठीक भी हो रहे हैं तो फिर इसके लिए अलग से दवा बनाने की क्या ज़रूरत है।
इसके जवाब में विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर कोरोना वायरस का इलाज ढूंढ लिया गया तो भविष्य में इसे फैलने से रोका जा सकता है। आने वाले समय में ये महामारी दुनिया को घुटनों पर न ला पाए इसके लिए ज़रूरी है कि कोरोना वायरस की दवा जल्द से जल्द बना ली जाए।
नई दवा बनाने की ज़रूरत को लेकर उठ रहे सवालों पर डॉ. सरीन कहते हैं कि लोग ठीक होने वालों का आंकड़ा देख रहे हैं लेकिन मरने वालों का आंकड़ा शायद नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।
धन्यवाद्।
खुद सुरक्षित रहें और दूसरों को सुरक्षित रखें। भारत सरकार के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें। और लॉक डाउन को सफल बनावे।

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