जिसके नाम पर ताज महल बना, उसकी मौत कैसे हुई?

जिसके नाम पर ताज महल बना, उसकी मौत कैसे हुई?


Mumtaj Mahal, beloved wife of Mughal emperor Shah Jahan died in childbirth

संगमरमरी खंभे. और उनपर पड़ती चांद की रोशनी. नायिका दौड़ती हुई आती है. वो गाती है…

ये माना हमें जां से जाना पड़ेगा
पर ये समझ लो तुमने जब भी पुकारा हमको आना पड़ेगा
हम अपनी वफ़ा पे न इल्ज़ाम लेंगे
तुम्हें दिल दिया है, तुम्हें जां भी देंगे

नेटफ्लिक्स पर एक नई सीरीज आई है. नाम है- लैला. इसमें एक भविष्य है, जो कतई ‘भविष्य’ नहीं. क्योंकि भविष्य थोड़ा-बहुत पॉजिटिव शब्द है. लैला 2047 के काल्पनिक भारत की कहानी है. जब इसका नाम भारत नहीं, आर्यावर्त हो गया है. उस आर्यावर्त में सांप्रदायिक सौहार्द का कोई अस्तित्व नहीं. वहां भाईचारे की कोई अहमियत नहीं. और वहां ताज महल के लिए कोई जगह नहीं. एक सीन है ‘लैला’ में. जहां कुछ धर्मांध दक्षिणपंथी बम लगाकर ताज महल उड़ा देते हैं. कैमरा उनके सामने होता है. यहां वो ‘जय आर्यावर्त’ का नारा लगा रहे हैं और पीछे ताज महल मिट्टी में मिल रहा है. इसी प्रसंग से चलते हैं ताज महल की कहानी पर…

ताज महल के बनने की राह यूं हुई
पहली नज़रजहांगीर के दौर में एतमाउद्दौला वज़ीर बनाए गए. इन्हीं एतमाउद्दौला के बेटे थे अबु हसन आसफ़ खान. और इन्हीं अब्दुल हसन आसफ़ खान की बेटी थी अर्जुमंद (जिन्हें बाद में मुमताज का नाम मिला). अर्जुमंद की पैदाइश थी 27 अप्रैल, 1593 की थी. बेइन्तहा खूबसूरत थी वो. बला की हसीन. कहते हैं शाहजहां ने पहली बार अर्जुमंद को आगरा के मीना बाज़ार की किसी गली में देखा था. उसकी अनहद खूबसूरती, शाहजहां को पहली नज़र में उससे प्यार हो गया.
सगाईशाहजहां और अर्जुमंद की शादी में कोई दीवार नहीं थी. अप्रैल 1607 की बात. 14 साल की अर्जुमंद और 15 साल के खुर्रम (शाहजहां का शुरुआती नाम) की सगाई हो गई.
निकाहफिर 10 मई, 1612 को सगाई के करीब पांच साल और तीन महीने बाद इन दोनों का निकाह हुआ. निकाह के समय शाहजहां की उम्र 20 बरस और तीन महीने थी. अर्जुमंद थी 19 साल और एक महीने की. जहांगीर ने इन दोनों की शादी का ज़िक्र अपने मेमॉइर ‘तुज़ुक-ए-जहांगीरी’ (ज्यादा प्रचलित जहांगीरनामा) में यूं किया है-
मैंने इत्तिक़ाद खान (दूसरा नाम आसफ़ खान और यमीनुद्दौला) वल्द इत्तिमादु-द-दौला की बेटी का हाथ खुर्रम के लिए मांगा था. शादी का जलसा भी हो गया था. तो गुरुवार 18 तारीख को मैं इत्तिक़ाद के घर गया. मैं वहां एक दिन और एक रात ठहरा. खुर्रम ने मुझे तोहफ़े पेश किए. उसने बेगमों को, अपनी मां और सौतेली मांओं को हीरे-जवाहिरात तोहफ़े में दिए. खुर्रम ने हरम में काम करने वाली औरतों को भी हीरे-जवाहिरात दिए.
तारीख का थोड़ा कन्फ्यूजन हैआपको ज्यादातर जगह शाहजहां और अर्जुमंद की शादी 1607 पढ़ने में आएगी. मगर वो असल में सगाई की तारीख है. ‘तुज़ुक-ए-जहांगीरी’ का अंग्रेजी में तर्जुमा किया है अलेक्जेंडर रोज़र ने. इसमें उन्होंने तारीखों की मिसअंडरस्टैंडिंग पर लिखा है कि जहांगीर जब शाहजहां और अर्जुमंद की शादी का ज़िक्र करते हैं, वो खुरदाद महीने की 18 तारीख को हुआ. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक साल 1021 में. मॉडर्न कैलेंडर में इसे खोजें, तो 1612 के मई महीने का आखिर होगा. बादशाहनामा के हिसाब से चूंकि शादी की तारीख 30 अप्रैल, 1612 है तो लगता है कि जहांगीर शादी के एक महीने बाद बेटे से मिलने गए थे.
मुमताज अकेली बीवी नहीं थीअर्जुमंद और खुर्रम की जब सगाई हुई थी, तब खुर्रम की एक भी शादी नहीं हुई थी. मगर सगाई और शादी के बीच खुर्रम की एक शादी फारस की शहजादी क्वानदरी बेगम से हो गई. वो सियासी कारणों से करवाया गया रिश्ता था. अर्जुमंद से निकाह के बाद भी उसने एक और निकाह किया. अपनी तीन बीवियों में सबसे ज्यादा मुहब्बत शाहजहां अर्जुमंद बानो बेगम से करता था. अर्जुमंद यानी मुमताज की बुआ थीं मेहरुन्निसा. जिनकी शादी शाहजहां के पिता जहांगीर से हुई. और आगे चलकर इनका नाम ‘नूरजहां’ मशहूर हुआ.
कैसी थी मुमताज?शाहजहां के समय जो लिखा गया. उन सोर्सेज़ के मुताबिक अर्जुमंद काफी दयालु और उदार थी. वो मुगल साम्राज्य के प्राशासनिक कामों में भी शिरकत किया करती थीं. शाहजहां ने उन्हें एक राजसी मुहर भी दी थी. लोग उनके पास अपनी अर्जियां लेकर आते. वो विधवाओं को मुआवजे भी बांटा करती. जब भी शाहजहां किसी जंग पर जाते, मुमताज साथ होतीं.
बहुत कोशिश की, लेकिन मुमताज को बचा नहीं पाएमुमताज और शाहजहां के बीच इतनी मुहब्बत थी कि लोग कहते हैं शौहर और बीवी में ऐसा इश्क़ किसी ने देखा नहीं था. दोनों के 13 बच्चे हुए. तीसरे नंबर की औलाद था दारा शिकोह. और छठे नंबर पर पैदा हुआ था औरंगजेब. 1631 का साल था और महीना था जून. शाहजहां अपनी सेना के साथ बुरहानपुर में थे. जहान लोदी पर चढ़ाई थी. मुमताज भी थीं शाहजहां के साथ. यहीं पर करीब 30 घंटे लंबे लेबर पेन के बाद अपने 14वें बच्चे को जन्म देते हुए मुमताज की मौत हो गई. मुमताज के डॉक्टर वज़ीर खान और उनके साथ रहने वाली दासी सति-उन-निसा ने बहुत कोशिश की. लेकिन वो मुमताज को बचा नहीं पाए.
मुमताज की मौत के ग़म में शाहजहां ने अपने पूरे साम्राज्य में शोक का ऐलान कर दिया. कहते हैं, पूरे मुगल साम्राज्य में दो साल तक मुमताज की मौत का ग़म मनाया गया था. कहते हैं कि मुमताज जब आगरा में होतीं, तो यमुना किनारे के एक बाग में अक्सर जाया करती थीं. शायद इसी वजह से शाहजहां ने जब मुमताज की याद में एक मास्टरपीस इमारत बनाने की सोची, तो यमुना का किनारा तय किया.
38-39 बरस की उम्र तक मुमताज तकरीबन हर साल गर्भवती रहीं. शाहजहांनामा में मुमताज के बच्चों का ज़िक्र है. इसके मुताबिक-
1. मार्च 1613: शहजादी हुरल-अ-निसा
2. अप्रैल 1614: शहजादी जहांआरा
3. मार्च 1615: दारा शिकोह
4. जुलाई 1616: शाह शूजा
5. सितंबर 1617: शहजादी रोशनआरा
6. नवंबर 1618: औरंगजेब
7. दिसंबर 1619: बच्चा उम्मैद बख्श
8. जून 1621: सुरैया बानो
9. 1622: शहजादा, जो शायद होते ही मर गया
10. सितंबर 1624: मुराद बख्श
11. नवंबर 1626: लुफ्त्ल्लाह
12. मई 1628: दौलत अफ्जा
13. अप्रैल 1630: हुसैनआरा
14. जून 1631: गौहरआरा
1628 से 1658 तक शाहजहां ने हिंदुस्तान पर हुकूमत की. शाहजहां ने एक-से-एक नायाब आर्किटेक्चर पीस बनवाया. ताज महल उनमें से एक है. ये शाहजहां का एक पोट्रेट है. मुगल बादशाहों के ज्यादातर पोट्रेट ज्यादातर साइड प्रोफाइल ही हैं
1628 से 1658 तक शाहजहां ने हिंदुस्तान पर हुकूमत की. शाहजहां ने एक-से-एक नायाब आर्किटेक्चर पीस बनवाया. ताज महल उनमें से एक है. ये शाहजहां का एक पोट्रेट है. मुगल बादशाहों के ज्यादातर पोट्रेट ज्यादातर साइड प्रोफाइल ही हैं.
14 में से छह बच्चे मर गएऐसा नहीं कि बस मुमताज की मौत हुई हो. कई बच्चे भी मरे उनके. पहली बेटी तीन साल की उम्र में चल बसी. उम्मैद बख्श भी तीन साल में मर गया. सुरैया बानो सात साल में चल बसी. लुफ्त अल्लाह भी दो साल में गुजर गया. दौलत अफ्ज़ा एक बरस में और हुस्नआरा एक बरस की भी नहीं थी, जब मरी. यानी 14 में से छह नहीं रहे. पहले बच्चों में मृत्युदर बहुत ज्यादा हुआ करता था.
अपनी मॉडर्न समझ के सहारे मिडिवल समाज को जज मत कीजिएशाहजहां और मुमताज इतिहास के जिस हिस्से में हुए, वहां परिवार नियोजन नाम का कोई शब्द नहीं था. न ही ऐसी कोई रवायत थी. फैमिली प्लानिंग बहुत मॉडर्न कॉन्सेप्ट है. तब लोग सोचते थे, बच्चे ऊपरवाले की देन हैं. जितने होते हैं, होने दो. कम उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती. ऐसा नहीं कि भारत में ही औरतें बच्चे पैदा करने में मरती हैं. यूरोप में भी ऐसा ही हाल था. अपनी मॉडर्न समझ के हिसाब से हमें उस समय की चीजों को जज नहीं करना चाहिए. हमारी जो ये समझ बनी है, वो अपने समय और परिस्थितियों का नतीजा है. ये बनते बनते बनी है.

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