खुद को बदलना बेहद मुश्किल होता है.
कई बार इंसान को खुद की कमज़ोरियों का पता नहीं चलता. कई बार लगातार कोशिशों के बाद भी इंसान खुद को नहीं बदल पाता.
लेकिन हर किसी के जीवन में एकाध पल आते हैं जब लगता है कि खुद को नहीं बदला तो अस्तित्व का संकट बन आएगा.
कुछ ऐसा ही हुआ था रोहित शर्मा के साथ, साल 2011 में, जब के. श्रीकांत के नेतृत्व वाली चयनसमिति ने भारतीय उपमहाद्वीप में होने वाले वर्ल्ड कप क्रिकेट की टीम में मुंबई के इस बल्लेबाज़ को नहीं चुना.
वर्ल्ड कप, 2011 से पहले रोहित शर्मा ने चार साल लंबे करियर में 61 वनडे मैच खेले थे और इन मैचों में उनकी बल्लेबाजी का औसत 27 रन प्रति पारी था और दो शतक उनकी झोली में थे. कुल 1248 रन उनके नाम थे. ऐसे प्रदर्शन से उनकी जगह टीम में बनती भी नहीं थी.
हालांकि उनकी बल्लेबाज़ी का यह औसत तब था, जब रोहित को भारतीय क्रिकेट का सबसे प्रतिभाशाली बल्लेबाज़ आंका जा रहा था. अपनी कलाई के बूते उनमें किसी भी गेंदबाज़ को मैदान के किसी भी कोने से बाउंड्री पार भेजने का माद्दा था.
क्रिकेट के तमाम शॉट्स मसलन पुल, फ्लिक, कवर ड्राइव, ड्राइव, स्वीप, स्ट्रेट ड्राइव रोहित हर कुछ परफेक्ट अंदाज में लगाते. उनकी टाइमिंग कमाल की थी, किसी भी गेंद को खेलने के लिए उनके पास हर वक्त ज़्यादा समय होता था.
उनके आलोचक भी उन्हें गॉड गिफ्टेड बल्लेबाज़ मानते. लेकिन अपनी तमाम नैसर्गिक काबिलियत के बावजूद रोहित शर्मा के प्रदर्शन में निरंतरता की कमी थी.
इंटरनेशनल क्रिकेट में कामयाब होने के लिए जिस टेंपरामेंट और अनुशासन की जरूरत थी, रोहित के नज़रिए में उनका कोई मायने नहीं था. क्रिकेट के मैदान और नेट्स से ज्यादा रोहित का समय देर रात की पार्टियों में गुज़रता था और धीरे धीरे वे अनफिट भी हो रहे थे.
ऐसा लगने लगा था कि विनोद कांबली की तरह एक बेहद प्रतिभाशाली क्रिकेट का करियर अब सिमटने लगा है, तब पहली बार रोहित को वर्ल्ड कप क्रिकेट टीम से बाहर होना खला. टीम इंडिया जब वर्ल्ड कप जीत का तोहफा सचिन तेंदुलकर को भेंट दे रही थी, तब रोहित को उनके अंतर्मन ने निश्चित तौर पर कचोटा होगा.
आत्म मंथन के इसी दौर में रोहित ने खुद को बदलने का फ़ैसला लिया. जून, 2011 में जब वेस्टइंडीज़ के दौरे पर रोहित गए तो छह वनडे मैचों में उन्होंने तीन हाफ़ सेंचुरी जमाई और इसके बाद जब वेस्टइंडीज़ की टीम भारत दौरे पर आई तो पांच वनडे मैचों में तीन हाफ़ सेंचुरी उनके बल्ले से निकली. लगा रोहित लय में लौटने लगे हैं, तभी उनके करियर का सबसे बुरा साल शुरू हुआ.
2012 में रोहित ने 14 वनडे मैच खेले और इनमें 12 की औसत से महज 168 रन बनाए. उनसे एक साल छोटे विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा भारतीय टीम में अपनी जगह पक्की कर चुके थे, लेकिन रोहित शर्मा को अब तक टेस्ट मैच खेलने का मौका नहीं मिला था और वनडे टीम में भी उनका पत्ता साफ होने वाला था.
ऐसे में, साल 2013 उनके लिए बेहद अहम साबित होने वाला था. रोहित मिले मौके का फायदा नहीं उठा पाते तो ये उनके करियर का अंतिम साल साबित होता. इस चुनौती को स्वीकार करते हुए रोहित खुद को बदलने में जुटे थे. नेट्स पर वे दूसरे बल्लेबाज़ों के मुक़ाबले एक घंटा ज्यादा प्रैक्टिस करने लगे थे.
मुंबई के कोच प्रवीण आमरे के मुताबिक रोहित को नेट्स पर कभी किसी सलाह की जरूरत नहीं पड़ी. खुद को फिट रखने के लिए उन्होंने घंटों का अभ्यास शुरू किया. जब रोहित ने अपनी ओर से कोशिशें शुरू कीं तो किस्मत ने भी उनका साथ दिया. टीम प्रबंधन ने ज़रूरत के मुताबिक उन्हें ओपनिंग की जिम्मेदारी दी. आईपीएल में मुंबई इंडियंस की कप्तानी ने भी उन्हें मैच्योर बनाया.
2013 में इंग्लैंड में आयोजित चैंपियंस ट्रॉफी में रोहित ओपनर के तौर पर कामयाब बल्लेबाज़ साबित हुए. शिखर धवन के साथ उनकी जोड़ी ने गौतम गंभीर और वीरेंद्र सहवाग की जोड़ी की कोई कमी नहीं खलने दी.
इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ घरेलू मैदान पर खेली गई सीरीज़ में जयपुर में नाबाद 141 रन बनाने के बाद उन्होंने बैंगलोर में 209 रनों का पहाड़ खड़ा कर दिया. 209 रन में रोहित ने कुल 16 छक्के लगाए. उनके फॉर्म को देखते हुए टेस्ट मैच में मौका मिला तो पहले ही मैच में कोलकाता के ईडेन गार्डेन में रोहित ने 176 रन ठोक दिए.
रोहित की कामयाबी की पीछे एक ही वजह रही, वो गॉड गिफ्टेड टैलेंट को तराशने में जुट गए थे. देर से ही सही उन्हें मालूम हो गया था कि केवल टैलेंट से काम नहीं चलता.
इसी मानसिकता के चलते ईडेन गार्डेन में श्रीलंका के खिलाफ चोट के बाद वनडे वापसी कर रहे रोहित शर्मा ने विकेट पर टिकने को अपना पहला लक्ष्य बनाया. जमने के बाद उनपर अंकुश लगाना किसी के बस में नहीं रहा.
इसका दूसरा नज़ारा उन्होंने 13 नवंबर, 2014 को तब दिया जब उन्होंने श्रीलंका के ख़िलाफ़ वनडे मुकाबले में ईडेन गार्डेन के मैदान में 264 रन ठोक दिया.
इतिहास बनाने वाली पारी की आख़िरी गेंद पर आउट होने के बाद पवेलियन लौटने पर जब उनसे पूछा गया कि क्या आप थक गए थे, तो उनका जवाब था, जी नहीं, मैं अगले पचास ओवर और खेल सकता था. ये जवाब बताता है कि, उनका खेल के प्रति नजरिया और टेंपरामेंट दोनों बदल चुका है. उन्हें अपने टैलेंट का अंदाजा हो चुका है.
कह सकते हैं रोहित शर्मा उस मुकाम तक पहुंच चुके थे जहां से पीछे मुड़कर देखने की कोई बात ही नहीं थी. इसका अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि तब तक 124 वनडे मैचों में रोहित शर्मा ने 3479 रन बनाए थे, जिसमें महज़ तीन शतक शामिल थे.
उस तूफानी पारी से जो सफ़र रोहित ने शुरू किया वो श्रीलंका के ख़िलाफ़ मुक़ाबले तक कुल 90 मैचों तक पहुंचा है और इसमें रोहित शर्मा ने 5178 रन ठोक दिए हैं, और तो और इसमें कुल 23 शतक उनके बल्ले से निकले हैं, यानी हर चौथे वनडे से पहले रोहित शर्मा के बल्ले से शतक निकला है.
2011 के वर्ल्ड कप से बाहर बिठाए गए रोहित शर्मा 2015 के वर्ल्ड कप में शामिल हुए और बांग्लादेश के ख़िलाफ़ के शानदार शतक बनाकर टीम को सेमीफ़ाइनल तक पहुंचाया. लेकिन वो एक्स फैक्टर साबित नहीं हो पाए. टीम सेमीफ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हारी तो कप के साथ साथ रोहित शर्मा को कुछ कम रह जाने का मलाल रह गया होगा.
रोहित शर्मा की पत्नी रितिका सजदेह अपनी बेटी समायरा के साथ
इसी साल रोहित ने अपने मंगेतर रितिका सजदेह से विवाह भी रचा लिया. पत्नी रितिका के साथ ने उनके खेल को स्थिरता दी, उन्हें मालूम हो गया था कि वे जब चाहें एक बड़ी पारी खेल सकते हैं.
फिर 2017 में एक बार फिर उन्होंने मोहाली में श्रीलंकाई टीम की खबर ली और वनडे क्रिकेट में तीसरा दोहरा शतक ठोक दिया. ऐसा करिश्मा कर दिखाने वाले रोहित शर्मा दुनिया भर के इकलौते बल्लेबाज़ बने हुए हैं.
इस पारी के बाद जब उनसे छक्के लगाने का राज पूछा गया तो उनका जवाब था, ''छक्के मारना आसान नहीं है, विश्वास कीजिए. ये काफ़ी अभ्यास और कड़ी मेहनत के बाद आता है. क्रिकेट में कुछ भी आसान नहीं होता. टीवी पर भले आसान लगे.''
इससे साफ़ होता है कि रोहित उस मर्म को समझ गए थे जहां से उनके लिए हर मुश्किल को आसान बनाना सहज हो चुका था. लेकिन जिस तरह से वे इंग्लैड में चल रहे वर्ल्ड कप में बल्लेबाज़ी कर रहे हैं उससे लग तो यही रहा है कि वे यहां पहले 2011 वर्ल्डकप और फिर 2015 में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाने के मलाल को अपने सीने में दबाए आए हैं.
दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान और इंग्लैंड जैसी दमदार टीमों के खिलाफ शतक सहित रोहित इस वर्ल्ड कप में पांच शतक ठोक चुके हैं. सिंगल वर्ल्ड कप में इतने शतक अब तक कोई बल्लेबाज़ नहीं बना पाया है. इनमें तीन शतक तो बैक टू बैक लगाए गए हैं.
2015 में बांग्लादेश के ख़िलाफ़ शतक को मिला दें तो रोहित शर्मा के वर्ल्ड कप में छह शतक हैं. इतने ही शतक सचिन तेंदुलकर ने भी बनाए थे. सचिन तेंदुलकर को इतने शतक तक पहुंचने के लिए 44 मैच खेलने पड़े थे जबकि छह शतक रोहित शर्मा ने महज 16 वर्ल्ड कप मैचों में ठोक दिए हैं.
हालांकि वर्ल्ड कप के शतकों में रोहित शर्मा का एक दूसरा अंदाज दिखा है. आखिरी के तीन लगातार मैचों में शतक बनाने के बाद रोहित शर्मा जल्दी आउट हुए हैं, जबकि रोहित शर्मा अपने शतक को बड़ी पारी में तब्दील करने के लिए जाने जाते रहे हैं. जानकार बताते हैं, उन्हें शतक जमाने के बाद अपनी पारी पर ज्यादा फोकस करना होगा.
रोहित शतक के बाद जिस तेज अंदाज़ में गेंदबाज़ों की धुलाई करते हैं, उसकी टीम इंडिया को सबसे ज़्यादा जरूरत सेमीफ़ाइनल और फ़ाइनल मुकाबले में होगी.
रोहित ने इस वर्ल्ड कप में जो इतिहास बनाया है वह और भी सुनहरा हो सकता है अगर बाकी के दो मैचों में उनका बल्ला रन उगलता रहा. वर्ल्ड कप 2019 में अब तक रोहित शर्मा ने आठ मैचों में 647 रन बनाए हैं. एक वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा रन के सचिन तेंदुलकर के 673 रन का रिकॉर्ड तोड़ने से रोहित महज 26 रन दूर हैं. अगर वे एक और शतक बना लेते हैं तो वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा शतक लगाने का रिकॉर्ड उनके नाम हो जाएगा और इंग्लिश मैदान पर भी सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले विदेशी बल्लेबाज़ बन सकते हैं.
अगर रोहित सेमीफ़ाइनल में भी शतक बना देते हैं तो फिर वे 2015 वर्ल्ड कप में कुमार संगाकारा के बैक टू बैक चार शतकों के रिकॉर्ड की बराबरी भी कर लेंगे. रोहित शर्मा जिस अंदाज़ में अभी खेल रहे हैं उसमें वे कुछ भी कमाल दिखा सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें विकेट पर टिकना होगा.
पिछले दो मैचों में लोकेश राहुल के साथ रोहित शर्मा ने जिस अंदाज़ में 180 और 189 रनों की भागीदारी की है, उसे देखते हुए उनसे उम्मीदें कहीं ज्यादा हैं और इन्हीं उम्मीदों पर टिका है टीम इंडिया के वर्ल्ड कप जीतने का सपना.
आठ साल बाद ही सही रोहित शर्मा के पास मौका है खुद को स्टार खिलाड़ी से लीजेंड के तौर पर स्थापित होते देखने का, वे ऐसा नहीं कर पाए तो इसकी कसक क्या होगी, ये उनसे बेहतर कोई क्या जानेगा.
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