भारत में इंजीनियरों की बढ़ती बेरोजगारी की 75% जिम्मेदारी सरकार की है और 25% अभिभावकों और छात्र-छात्राओं की भेड़चाल की। इस समस्या को जैसा कि मैंने समझा है, नीचे बिन्दुबार और क्रोनोलोजीकली लिस्ट आउट कर रहा हूँ।
- भारत सरकार ने 2003-4 में हर प्रदेश के रीजनल इंजीनियरिंग कालेज को NIT - National Institute of Technology / राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान का नाम दिया। और इसके सैलेक्शन के लिए AIEEE - All India Engineering Entrance Exam निर्धारित किया गया।
- उस समय तक IITs केवल 6 थे-बम्बई, दिल्ली, मद्रास, खड़गपुर,कानपुर और गोहाटी। इसके अलावा IT - BHU और ISM - धनबाद थे। इन आठ संस्थानों का सैलेक्शन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान - संयुक्त प्रवेश परीक्षा (IIT - JEE) द्वारा होता था।
- रुड़की इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश के लिए उस समय अलग परीक्षा होती थी। उस समय तक रुड़की को IIT का दर्जा नहीं दिया गया था। लेकिन उसकी साख IIT से भी ऊँची थी।
- अब 2003-4 के बाद से इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए AIEEE और JEE-IIT दो प्रवेश पंरीक्षाएं होने लगीं।
- 1989 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद आरक्षण 49.5% हो गया, इसलिए जनरल क्लास के लिए प्रवेश मिलना बहुत मुश्किल हो गया। इस वजह से कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्तोंं की तरह फैल गये और अभी भी फैलते जा रहे हैं।
- जब छात्रों को सरकारी इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश मिलना मुश्किल हुआ तो प्राईवेट इंजीनियरिंग कालेज खुलने लगे। हालांकि इसकी अनुमति सरकार ने ही दी। ये अनुमति सरकार में पैठ रखने वाले छुटभैये राजनेताओं को मिली और उन्होंने खुली लूट मचा दी - दोनों तरह से - फीस भी ज्यादा और पढ़ाई के लिए इंजिनियरिंग कालेज जैसा इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं। इससे 4 साल बाद हाथ में एक कागजनुमा इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर छात्र बाहर निकलने लगे। और नौकरी - वो क्या होती है, उन्हें मिलती ही नहीं थी। यही दशा अभी तक है। तो इस तरह से सरकार जिम्मेदार है प्राईवेट कालेजों की अनुमति देके। छात्र बेचारे ठगे से रह गये।
अब ये देखते हैं सरकारी संस्थानों IITs, NITs, IIITs, GFTIs (Government Funded Technology Institute) में आज की तारीख में या 2018-19 सत्र के लिए कितनी सीटें थीं। ये जानकारी नीचे टेबुल में दर्शाई गयी है।
इस लिंक में आप IIT, NIT, IIIT wise सीटों का ब्रेकअप देख सकते हैं। पिछले सत्र से लड़कियों के लिए 14% सीटें अलग से बढ़ायी हैं सरकार ने।
इन सब का टोटल किया जाये तो गर्ल्स कोटे की सीटों सहित 39,425. सीटें बैठतीं हैं। कुछ और अच्छे कालेज जैसे जाधवपुर यूनिवर्सिटी (पश्चिम बंगाल), इंजीनियरिंग कालेज, Guindy(तमिलनाडु), BITS पिलानी, गोवा और हैदराबाद कैम्पस समेत 50,000. सीटें मान लेते हैं, जिसमें थापर, मणिपाल जैसे प्राइवेट संस्थान वगैरह सब को ले लिया है।
मेरा अनुमान है कि प्रतिवर्ष इन में से 45000. इंजीनियर भी पास होकर निकले तो सभी को अच्छी नौकरी नहीं मिल पाती। तो प्राईवेट कालेज वालों को कहाँ से मिलेगी?
सरकार आँख बन्द करके बैठी है। कहती है स्टार्ट अप खोलो, पकोड़े का 5 स्टार ठेला लगाओ या 5 स्टार ढाबा खोलो, या IIM करके सब्जी भी बेच सकते हो, बिहार में एक IIM-A वाला यही कर रहा है। मैं उसकी हँसी नहीं उड़ा रहा, वो ये अपनी मर्जी से कर रहा है। सीधे किसानों से खेत से सब्जी खरीदता है, वहीं पैक कराता है और सीधे डिस्पेच। उसकी माँ ने कहा था सब्जी जरूर बेचना लेकिन सबसे बड़ा सब्जी वाला बनना। अब ये सोच हर नौजवान में तो नहीं हो सकती। तो मुझे प्राईवेट इंजीनियरिंग कालेज के 90% इंजीनीयरों का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है।
(ये जानकारी मैंने 2013–14 से 2018 तक अपने भाई की कोचिंग से ले कर काऊँसिलिंग प्रौसेस तक एकत्रित की है - 100% सही होने का दावा तो नहीं करता, लेकिन एक प्रीव्यू देने की कोशिश की है, जिसे बच्चों से ज्यादा उनके अभिभावकों को समझने की जरुरत है)
और भी हैं राहें !! अगला उत्तर कुछ दिनों बाद इसी विषय पर मिलेगा कि इजीनियर, डाक्टर नहीं तो क्या। उस बारे में पहले मैं शोध तो कर लूँ।
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