घड़ी की तरफ देख के हमें क्या सीखने को मिलता है ?

तुम्हे नहीं लगता की मेरे साथ धोखा करती हो?
जब इंतज़ार रहता किसी का तो ऐसे चलती मानो जकड़ी पैरों में बेड़ियाँ हो
और जब वो साथ होती थी तुम यूँ निकल जाती मानो पहियों पर रखी ऐड़ियाँ हो

तुम्हे नहीं लगता जब देर हो रही होती तो तुम एकबार में दो कदम बढ़ाती हो?
या मुझे दौड़ता देख तुम भी छोटी वाली सुई से रेस लगाती हो?

हर सेकंड मेरी उम्र बढ़ा रही, पर खुद चौबीस के बाद शुन्य से शुरू हो जाती हो
मैं थककर, हारकर कई बार बैठ जाता फिर तुम कैसे निरंतर चलती जाती हो?

जाने वाले चले जाते है और तुम बंद हो कर भी दो वक्त का समय बतलाती हो
ये वक्त भी गुजर जायेगा हरबार बोलकर न जाने कितनो को बहलाती हो

अभी हर इम्तिहान में ऐसे गुजर जाती जैसे मुट्ठी से निकलती रेत हो
कल जब बूढ़ा हो जाऊंगा तो ऐसे बहोगी जैसे पानी में मिली मिट्टी की लेप हो

बीता वक्त वापस नहीं आता मुझे तो रोज़ मुझे सिखाती हो
फिर खुद कैसे दो दो चक्कर हर दिन वही के लगाती हो

तुम्हे नहीं लगता की मेरे साथ धोखा करती हो?
जब दिनभर चुपचाप चलती और रात में टिक टिक करती हो
अच्छा बस मेरे साथ ऐसा है या सबके साथ ऐसा करती हो?
धन्यवाद

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